ग़ज़ल
उनकी ख़ूबी मुझे जब ख़राबी लगी
उनको मेरी भी हालत शराबी लगी
उम्र-भर उनके ताले यूं उलझे रहे
वक़्त पड़ने पे बस मेरी चाबी लगी
उनके हालात जो भी थे, अच्छे न थे
उनकी हर बात मुझको क़िताबी लगी
उनके पोस्टर पे गांधीजी चस्पां थे पर
उनके गुंडों की नीयत नवाबी लगी
मिलना-जुलना मुझे उनका अच्छा लगा
भ्रष्ट थे सबके सब, ये ख़राबी लगी
-संजय ग्रोवर
उनकी ख़ूबी मुझे जब ख़राबी लगी
उनको मेरी भी हालत शराबी लगी
उम्र-भर उनके ताले यूं उलझे रहे
वक़्त पड़ने पे बस मेरी चाबी लगी
उनके हालात जो भी थे, अच्छे न थे
उनकी हर बात मुझको क़िताबी लगी
उनके पोस्टर पे गांधीजी चस्पां थे पर
उनके गुंडों की नीयत नवाबी लगी
मिलना-जुलना मुझे उनका अच्छा लगा
भ्रष्ट थे सबके सब, ये ख़राबी लगी
-संजय ग्रोवर
आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शुक्रवार (26-01-2018) को "गणचन्त्र दिवस की हार्दिक शुभकामनाएँ" (चर्चा अंक-2860) पर भी होगी।
जवाब देंहटाएं--
चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
--
गणतन्त्र दिवस की
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
बहुत शुक्रिया शास्त्रीजी
हटाएंबहुत शुक्रिया हर्षवर्द्वनजी
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