ग़ज़ल

ये शख़्स कितना पुराना है, बुहारो कोई
अभी भी चांद पे बैठा है, उतारो कोई
दिलो-दिमाग़ में उलझा है, उलझाता है
इसकी सच्चाई में सलवट है, सुधारो कोई
पत्थरों से न करो बोर किसी पागल को
सर में सर भी है अगर थोड़ा तो मारो कोई
ये तेरी ज़ुल्फ़ है, ख़म है कि है मशीन कोई
हो कोई रस्ता तो रस्ते में उतारो कोई
कभी निहारना लगता है घूरने जैसा
न कोई घूरे तो कहते हैं निहारो कोई
-संजय ग्रोवर
23-12-2017

ये शख़्स कितना पुराना है, बुहारो कोई
अभी भी चांद पे बैठा है, उतारो कोई
दिलो-दिमाग़ में उलझा है, उलझाता है
इसकी सच्चाई में सलवट है, सुधारो कोई
पत्थरों से न करो बोर किसी पागल को
सर में सर भी है अगर थोड़ा तो मारो कोई
ये तेरी ज़ुल्फ़ है, ख़म है कि है मशीन कोई
हो कोई रस्ता तो रस्ते में उतारो कोई
कभी निहारना लगता है घूरने जैसा
न कोई घूरे तो कहते हैं निहारो कोई
-संजय ग्रोवर
23-12-2017