
अपने हक़ में अक्स बदल देने के आदी निकले रे
आईने भी हिंदू-मुस्लिम-ब्राहमनवादी निकले रे
वही बारहा बनके मसीहा-ए-आज़ादी निकले रे
ज़ालिम ने मज़लूमों को हर तरह से यूं बेदख़ल किया
उनका हक़ भी ख़ुद लेने को बन फ़रियादी निकले रे
भरम को जिनने कहा हक़ीक़त, छोटेपन को ऊंचाई
वो रंगीन-मिज़ाज, ओढ़कर शक़्लें सादी, निकले रे
पहले क्या-क्या होता होगा, लोगों ने कुछ यूं जाना
जिनको आंदोलन समझा, सब कूदा-फ़ांदी निकले रे
-संजय ग्रोवर
04-12-2014