tag:blogger.com,1999:blog-4199775936001289890.post614319894320314405..comments2023-09-13T20:34:42.779+05:30Comments on saMVAdGhar संवादघर: उदयप्रकाश प्रकरण: कहीं पे निगाहें कहीं पे निशाना !?Sanjay Groverhttp://www.blogger.com/profile/14146082223750059136noreply@blogger.comBlogger33125tag:blogger.com,1999:blog-4199775936001289890.post-76787371799981051382009-08-10T10:43:50.314+05:302009-08-10T10:43:50.314+05:30और नारे कौन से कब लिखे हैं हमने बताईयेगा? अंधेरे म...और नारे कौन से कब लिखे हैं हमने बताईयेगा? अंधेरे में तीर मत चलाइये कहीं आप तक ही ना लौट आये<br /><br />आप जिनकी चड्ढी धोते हैं उनका पता बताईये।Ashok Kumar pandeyhttps://www.blogger.com/profile/12221654927695297650noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-4199775936001289890.post-41996916177237832042009-08-10T10:41:04.142+05:302009-08-10T10:41:04.142+05:30जिन्हें अपना नाम बताने में शर्म आती है वे दूसरों प...जिन्हें अपना नाम बताने में शर्म आती है वे दूसरों पर सवाल किस हक़ से उठाते हैं? कितना जानते हैं आप हमें? अगर खाली समयांतर पढते तो पता चलता कि जो अब आप चिल्ला रहे हैं वो हम कई बरस पहले तर्क और आंकडो सहित बयान कर चुके हैं। वामपंथ चूं चूं का मुरब्बा नहीं कि नेट पर नेटे की तरह छिनक दिया।<br /><br />पूरी जवानी संघर्षों में बिताकर कहने सुनने का हक़ पाया है। किसी ममता या बसु ने नहीं जनता ने सिखाया कि आज भी मुक्ति का हथियार वहीं है। और आप की विचारधारा क्या है? सबको गरियाना और फिर पेट भर खा के गंद फैलाना। वाम की चिंता छोडिये…आप जहां से खाद इकट्ठा करते हैं वहीं उसी लीद की गंध पर ध्यान दीजिये- स्वास्थ्य ठीक रहेगाAshok Kumar pandeyhttps://www.blogger.com/profile/12221654927695297650noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-4199775936001289890.post-62267469941859405202009-08-08T15:15:51.248+05:302009-08-08T15:15:51.248+05:30अरे भाई पांडे जी त बिदक गए. पांडे बाबू को ई भी त द...अरे भाई पांडे जी त बिदक गए. पांडे बाबू को ई भी त देखने का ज़रुरत है कि बंगाल में नंदीग्राम से पहिले का कुछ हुआ ही नहीं था? ई नंदीग्राम त पराकाष्ठा है भाई पांडे बाबू. जब पानी सर से ऊपर चला गया तब आपको लगा कि पानी ऊपर अऊर आप भितरे. कोई देख ही न पायेगा आपको. तब आप हुआँ से निकलकर डिजर्ट में खड़े हो गए. अब शेखी बघार रहे हैं? आपको मालुम है बाबू कि नंदीग्राम से पहिले ही आपका भगवान (सौरी. भगवान पर त विशबासे नहीं है आपका) सबका राज्य में राशन दुकान सब लुटना शुरू हो गया था? काहे हुआ ऐसा? पूछे कभी उनसे जिनके लिए नारा लिखकर साहित्यकार का लिस्ट में नाम डलवाए हैं? <br /><br />खैर, जाने दीजिये.<br /><br />धन्य है बाम. और धन्य हैं काम. (रेड?)Anonymousnoreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-4199775936001289890.post-20329337304190954542009-08-08T15:15:30.282+05:302009-08-08T15:15:30.282+05:30अरे भाई पांडे जी त बिदक गए. पांडे बाबू को ई भी त द...अरे भाई पांडे जी त बिदक गए. पांडे बाबू को ई भी त देखने का ज़रुरत है कि बंगाल में नंदीग्राम से पहिले का कुछ हुआ ही नहीं था? ई नंदीग्राम त पराकाष्ठा है भाई पांडे बाबू. जब पानी सर से ऊपर चला गया तब आपको लगा कि पानी ऊपर अऊर आप भितरे. कोई देख ही न पायेगा आपको. तब आप हुआँ से निकलकर डिजर्ट में खड़े हो गए. अब शेखी बघार रहे हैं? आपको मालुम है बाबू कि नंदीग्राम से पहिले ही आपका भगवान (सौरी. भगवान पर त विशबासे नहीं है आपका) सबका राज्य में राशन दुकान सब लुटना शुरू हो गया था? काहे हुआ ऐसा? पूछे कभी उनसे जिनके लिए नारा लिखकर साहित्यकार का लिस्ट में नाम डलवाए हैं? <br /><br />खैर, जाने दीजिये.<br /><br />धन्य है बाम. और धन्य हैं काम. (रेड?)Anonymousnoreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-4199775936001289890.post-19288925388422339782009-08-08T14:34:08.218+05:302009-08-08T14:34:08.218+05:30वामपंथ को गाली देना फ़ैशन हो गया है आजकल।
विपर्यय क...वामपंथ को गाली देना फ़ैशन हो गया है आजकल।<br />विपर्यय के दौर में यह अस्वाभाविक भी नहीं<br /><br />पर हां ऐसे लोग बतायेंगे कि ख़ुद उनकी परंपरा क्या है? उनकी पक्षधरता क्या है? अगर नंदीग्राम के ख़िलाफ़ हमारे जैसे लोग सीपीएम को डेज़र्ट कर रहे हैं तो यह वाम के प्रति हमारी प्रतिबद्धता है। हम बंगाल की सत्ता का जश्न मनाने के लिये नहीं इस देश की व्यापक जनता की पक्षधरता के लिये वामपंथी हैं।<br /><br />और इस पर हमें आज भी गर्व है।Ashok Kumar pandeyhttps://www.blogger.com/profile/12221654927695297650noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-4199775936001289890.post-73905794266337647812009-08-05T15:55:37.449+05:302009-08-05T15:55:37.449+05:30कबीर को मैग्सेसे पुरस्कार मिलना चाहिए था. एकलव्य क...कबीर को मैग्सेसे पुरस्कार मिलना चाहिए था. एकलव्य को तो यूनिवर्सिटी का वाइस चांसलर बना देना चाहिए था. वाइस चांसलर बनकर धृष्टद्यूम्न को फेल कर देता. उसके पाँव का अंगूठा कटवा लेता सो अलग. बुद्ध को बाबासाहब आंबेडकर पुरस्कार से नवाजा जाना चाहिए था. गैलिलियो के लेख नया ज्ञानोदय में छपने चाहिए थे और उसे १००१ रूपये के साथ ताम्रपत्र दिया जाना चाहिए था. तब जाकर इतिहास रोज उनका चालीसा पढ़ता. (मेरा मतलब लोग)<br /><br />और ई किसान का नाम राधामोहन काहे बताते हैं जी? इससे तो ये सवर्ण किसान लगता है. अरे भैया, सवर्ण किसाने हो जाएगा तो फिर असली किसानी तो जाती रहेगी मुलुक से. और ई हिमांशु सभरवाल भी त सुना है हत्या का आरोप से आरोपियाये हैं. जे एन यू का नेतवा सब उसका चरित्र के बारे में का कहता है जी? येचुरी जी?...का चुरा रहे हैं अब?<br /><br />और का ई आप वर्णशत्रु और वर्गशत्रु का बात कर रहे हैं? कोई ठीक से पढेगा त आपके ही उपरे आरोप लगा देगा कि आप शत्रुघ्न सिन्हा के कहने पर ई लेख लिखे हैं. वर्गशत्रु बताने से पैसा मिलता है. समझिये. आप भी महराज?<br />बामपंथियों से ई भी पूछिए कि काहे महाश्वेता देवी आजकल ममता बनर्जी का मंच पर लौकती हैं?....ई सब काहे नहीं बताता कि तथाकथित प्रगतिवादी कवि-लेखक सब ई सब को डिजर्ट करके बंगाल में काहे चला गया....ई बामपंथिया सब का चरित्तर के बारे में काहे नहीं पोछता सब?<br /><br />खैर, छोडिये...जाने दीजिये. केतना कहेगा मनई सब? ई सब चिरकुटई नहीं छोडेगा.Anonymousnoreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-4199775936001289890.post-46925526693899310662009-08-03T18:54:59.707+05:302009-08-03T18:54:59.707+05:30बीमारी खोजन की खातिर तो हम यहां पहुंचल बा बबुआ। इ...बीमारी खोजन की खातिर तो हम यहां पहुंचल बा बबुआ। इ जो खिसियाए रहो हो, इ कि दरकार न बा। हम तुहार दुसमन न बा। और कीडा कव्वा हम तोहके न बोले रहिन इ तो मुहावरे हैं, अगर ठेस पहुंची हो तो बाइज्जत हम शर्मिंदा बा। पर बबुआ अब ऐंठ छोड दो और नाराजगी भी, क्योंकि हम इहां झगडा करन खातिर नहीं आइल। जब समय आइ तो पहचान भी हो जाइ और पोस्ट भी लग जाइ । और हम इहां अभिमन्यु को बचान खातिर आई शहीद करन खातिर नाहीं। अगर अब भी लगत है कि हम तो पे वार करत हैं तो इ तुहार बुद्वि, पर बबुआ आपन दिमाग और ऊर्जा अच्छे काम खातिर लगा। और ई गुल्लक, तिजोरी की बात छोडि के आपन हाथ फैलाओ और दुनिया को थोडे बडे चश्मे से देखन की कोसिस करो। इ दुनिया बहुत खूबसूरत बा।TUMHARI KHOJ MEhttps://www.blogger.com/profile/05722344308055853833noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-4199775936001289890.post-65038594251382007562009-08-02T15:27:20.016+05:302009-08-02T15:27:20.016+05:30बेबात दूसरन का कीड़ा-कव्वा बोलन वाले का मुख से मरिय...बेबात दूसरन का कीड़ा-कव्वा बोलन वाले का मुख से मरियादा, सालीनता जैसा लफज अच्छा नाहीं ना लगत। डागदर बनिबे का जादा ही सौक रहा तुमका। तौ डिगरी काहे ना लेत बचवा। डिगरी लइकै पूरा साइन बोरट लगइ के करौ न डागदरी। ई का नीम-हकीमन की तरियां छुप-छुपके सरमा-सरमा कै सिकार ढूंढत फिरत हौ। आपुना असल नाम भी ना बता सकत हौ किसी का। या फिर ऐइसा करिहों, ई जो तोहार सोकेसी नाम हैना-‘तोहारी खोज मा’, ईका बदलि कै करि लेओ ‘बिमारी, खोज मा’। जिससे का आम पाठक झट से समझ जईंए कि ई ब्लंडर बिमारी कोई सवसथ मरीज की खोज में निकर पड़ी है। आपुनाबचाव का तरीका करिके रखिबे का।<br />और हां, हमार संजय जी को भुनगा कीड़ा नाहीं है कि तुम उनका ईपंथी, ऊसंघी बताए रहे हौ। संजयजी जैसा स्वतंत्र मानस के आदमी का काहे तुम पंथ, धरम, संघ, धारा बिगैरह की छोटी-छोटी गुल्लकन मा फिट कर रहे हौ, भाई ? और जाऔ पहिलें आपुना असली नाम पता करिकै आऔ। जे कौन से खेल का नियम रहा के तुम तौ बार करौगे छुपि-छुपिकै और संजयजी का बना देओगे खुल्ला अभिमन्यु ? ना भाई ना। हम संजय जी का अइसा रिसक नाहीं लेन देंगे। जाऔ पहिले आपुना नाम पता करौ। अरे, जाओ-जाओ, तनिक तो हिम्मत करो, भाया। हां, साबास। हम ईहां वेट करत हैं तोहारा। लौट कै जरुर अईहों लला।अपना नहीं पता, दूजे को दे दवा !noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-4199775936001289890.post-59093875870682226172009-08-02T13:48:56.917+05:302009-08-02T13:48:56.917+05:30प्रिय संजय जी
आपका उत्तर पढा। इस वाद विवाद, फसाद...प्रिय संजय जी<br />आपका उत्तर पढा। इस वाद विवाद, फसाद या संवाद में मजा आने लगा है। हांलाकि व्यक्गित तौर पर तो मैं आपको नहीं जानता पर आपके शक्तिशाली तर्कों से स्पष्ट है कि विद्वान पुरुष के बौद्विक स्तर में वामपंथ रुपी वायरस ने स्थायी निवास बना लिया है। इस वायरस ने नास्तिकता, आरक्षणवाद, लंपट राजनेताओं का पक्ष लेने वाले जैसे कई दुर्गुणी वायरस भी पैदा कर दिए हैं पर जैसे डाक्टर अपने मरीज से स्नेह करते हैं वैसे ही मैं भी आपसे स्नेह रखते हुए इन कीडों/बीमारियों से आपको मुक्त करने का विश्वास दिलाता हूं। पुराने मर्ज को देखते हुए लंबे इलाज की दरकार है पर इसके अलावा कोई उपाय भी नहीं है। पर शर्त एक ही है कि इस दौरान भाषा अमर्यादित न हो और चुटीली रहे तो इस इलाज का असर तुरंत दिखने लगेगा। अगर हो सके तो कब्ज पैदा करने वाले वामपंथी साहित्य और अपनी ही भूमि पर मर चुके साम्यवाद तथा उन लेखकों जो आपके ब्लॉग में प्रशंसित होते रहते हैं के महिमामंडन से बचिएगा क्योंकि हो सकता है अपने छोटे से स्वार्थहित के लिए आप अपने बौद्विक स्तर का बडा ह्रास कर रहे हों। इस कडी को यहीं समाप्त करते हैं ताकि आपकी ऊर्जा किसी अच्छे विषय को पकाने में खर्च हो। हां मेरी विजिट होती रहेंगी ताकि मैं सुनिश्चित कर सकूं कि सब कुछ सही चल रहा है। अगली पोस्ट का अव्वल सिंह को बेसब्री से इंतजार रहेगा।<br />शुभकामनाओं सहित।TUMHARI KHOJ MEhttps://www.blogger.com/profile/05722344308055853833noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-4199775936001289890.post-16066730199950619702009-08-02T12:14:36.713+05:302009-08-02T12:14:36.713+05:30अरे पड़ोसियों, क्या कभी तुम्हारे पड़ोसी मंगलेश डबराल...अरे पड़ोसियों, क्या कभी तुम्हारे पड़ोसी मंगलेश डबराल ने भी अयोध्या<br />में कोई पुरस्कार लिया था ? याद करके बताओ तो।Anonymousnoreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-4199775936001289890.post-73688930329873588262009-08-01T13:29:44.974+05:302009-08-01T13:29:44.974+05:30संवाद घर इज संजय ग्रोवर और अशोक पांडे जी की बहस प...संवाद घर इज संजय ग्रोवर और अशोक पांडे जी की बहस पढ़ कर समझ में आया कि दो सही लोग कैसे किसी आधे तीतर आधे बटेर को अपने कोण से त्तीतर और बटेर साबित करने में अपनी ऊर्जा लगा रहे हैं . पर यह अच्छा ही इससे हम जैसे लोगों को बहुत कुछ सीखने को मिलता है. दरअसल इस मिश्रित व्यवस्था से उपजे लोग भी इसी की तरह होते हैं चाहे वे जो मुखौटा धारण करते हों . पूंजीवादी व्यवस्था कोई मोटा तगडा नाना दादा नहीं है जिस पर बाम पंथी बच्चे अपने छोटे छोटे घूँसे मार रहे हों और वह मजे ले रहा हो . यह सीधी लड़ाई है इसमें हम ही उस पर दबाव नहीं बनाते वे भी हमारे ऊपर भरपूर ताकत और कुटिलताओं से हमले करते हैं इससे हमारे लोग भी प्रभावित होते हैं. राजेंद्र यादव हों , उदय प्रकाश हों या अजय तिवारी हों इनमें से हरेक का अपना अपना उजला पक्ष भी है. परखने कि बात यह है कि कौन सा पक्ष सच्चा है और कौन सा मुखौटा है .अनेक लोग बाम पंथ का मुखौटा इसलिए भी लगा लेते हैं क्योंकि वह अब भी सब से विश्वसनीय और बेदाग है . वैज्ञानिक दृष्टिकोण उसे विश्वसनीयता प्रदान करता है . इस बहस में आप दोनों ही लोग समाज और वर्ग के साथ सहानिभूति पूर्वक सोच रहे हैं . देखने कि बात यह है कि किसका इतिहास कैसा रहा है , कौन कितनी तेजी से सुविधाओं कि और दोड़ कर जाता है और कितने समझौते करता है .वकील तो सबको मिल जाते हैं .अच्छे वकील तर्क भी अच्छे देते हैं .<br />में समझता हूँ कि उनके संघर्षशील पक्ष को समर्थन देते हुए उनकी कमजोरियों की भी निर्मम समीक्षा होते रहना चाहिए . जो लोग बाम पंथ का मुखौटा लगाये हैं उनको तो और अधिक कठोर आलोचंनाओं से गुजरने के लिए तैयार रहना चाहिए . इसमें सावधानी यह होना चाहिए कि हम उसके अच्छी कामों की भी लगातार तारीफ भी करते चलेंवीरेन्द्र जैनhttps://www.blogger.com/profile/03394460991280336978noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-4199775936001289890.post-53878428222784664752009-08-01T09:15:14.724+05:302009-08-01T09:15:14.724+05:30अव्वलसिंह जी, यह आस्तिकता की बब्बलगम अब थूक दो। इस...अव्वलसिंह जी, यह आस्तिकता की बब्बलगम अब थूक दो। इसका नकली मीठापन कबका खत्म हो चुका। कब तक ज़बरदस्ती चबाओगे ? बार-बार का हठ ठीक नहीं। वैसे भी यह झगड़ा नहीं बहस है। झगड़ा भी दंगे से तो बेहतर ही होता है। बिना प्रोफाइल वाले पड़ोसी खामख्वाह ऊंगली करेंगे तो हाथ धोने की परेशानी तो उठानी पड़ेगी। अगर हाथ धोने में अहंकार घिसता है तो ऊंगली दूर रखो भाई। और जानवर तो खाते भी हैं, हंगते भी हैं, जनते भी हैं। तो क्या इनसे अलग दिखने के लिए आदमी ये सब काम बंद कर दे ? कोई नए तर्क लाओ, यार। ये तो इतने सड़ गए कि अब खाद भी नहीं बनेगी। नास्तिक को आप चाहो तो कीड़े की श्रेणी में रख सकते हो। कीड़ा बुरा नहीं मानेगा। पर आस्तिक ! जब मतलब पड़ा कीड़े का बहुरुप। जब मरज़ी आयी इंसानों जैसी ऐक्टिंग। आपका कोई मुकाबला नहीं। आप वाकई लाजवाब हो। आप हज़ार साल पुराने वर्णवादी आरक्षण को छोड़ने को तैयार नही ंतो दूसरों से क्या उम्मीद रखते हो ? बुद्व, महावीर, नानक और गांधी के नाम किस मजबूरी में ले रहे हो भाई ? ताज़ा धर्मनिरपेक्षों और लचीले लौह पुरुषों से बड़ी जल्दी पिण्ड छुड़ा लिया। बड़े मतलबी निकले।<br />ये अच्छे और सच्चे पड़ोसी के विचार हैं, नकली प्रोफाइलों का इनसे सहमत होना अनिवार्य नहीं।अपना नहीं पता, दूजे को दे दवा !noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-4199775936001289890.post-63987332093491581982009-08-01T05:19:21.517+05:302009-08-01T05:19:21.517+05:30... प्रभावशाली अभिव्यक्ति !!!... प्रभावशाली अभिव्यक्ति !!!कडुवासचhttps://www.blogger.com/profile/04229134308922311914noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-4199775936001289890.post-57050028374638443982009-07-31T22:46:17.510+05:302009-07-31T22:46:17.510+05:30यह क्या हल्ला मचा रखा है? यह संवादघर है कि झगडा...यह क्या हल्ला मचा रखा है? यह संवादघर है कि झगडाघर। जब भी यहां आता हूं कोई न कोई पंगा मचा रहता है। क्या लोग शांति से नहीं रह सकते। पडोसियों को परेशानी होती है भई । बुद्व, महावीर, नानक और महात्मा गांधी जैसे महापुरुषों की इस धरती पर राजेन्द्र यादव, और पता नहीं कौन उदय प्रकाश जैसे लोगों के लिए इतना फसाद किया जा रहा है। मजे की बात यह कि बीच बीच में मायावती, लालू यादव, वृंदा कांरत जैसे मौकापरस्त, और घटिया राजनेताओं की वकालत की जा रही है। जानवर और मानव में यही फर्क है कि जानवर किसी धर्म को नहीं मानते और मानव मानवता को धर्म मानते हैं। नास्तिक और कीडे एक श्रेणी में रखे जा सकते हैं क्योंकि दोनों ही भगवान को नहीं मानते और सच की अनदेखी करते रहते हैं। इस घटिया और बंजर सोच की पैदावार को वामपंथी कहा जाता है जो वस्तुत: मौकापरस्ती और घटियापन की बेजोड मिसाल है। जैसे उपजाऊ भूमि से घास को निकाल फेंका जाता है वैसे ही लोकतंत्र में से वामपंथ और कम्युनिस्टों को निकाल देना चाहिए। पस्सू भइया (पासवान) चाहें तो वर्गभेद और जातिवाद पर अपनी सडी और बासी सब्जी फेंक कर खुश हो सकते हैं और बाद में उसी सडी और बासी सब्जी की आरक्षण रुपी खाद पर अपने बच्चों के लहलहाते भविष्य की फसल काट सकते हैं। यह अव्वल सिंह के विचार हैं लेखक का इनसे सहमत होना आवश्यक नहीं है।TUMHARI KHOJ MEhttps://www.blogger.com/profile/05722344308055853833noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-4199775936001289890.post-59893858027833029922009-07-30T20:23:38.168+05:302009-07-30T20:23:38.168+05:30सोनिया की चाटुकारिता अर्जुन की मज़बूरी थी पर आप वाल...सोनिया की चाटुकारिता अर्जुन की मज़बूरी थी पर आप वाले कुंवर साहब क्यूं कर रहे थे अपने ब्लाग पर्…तब कहां थे आप?Ashok Kumar pandeyhttps://www.blogger.com/profile/12221654927695297650noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-4199775936001289890.post-3798536380343137112009-07-30T20:22:03.175+05:302009-07-30T20:22:03.175+05:30्मैने की थी निंदा…समयांतर में भी और मोहल्ला पर ग्र...्मैने की थी निंदा…समयांतर में भी और मोहल्ला पर ग्रोवर साहब की एक पोस्ट पर किये कमेंट पर भी।<br />उदय उसी वाले लेखक संघ में ही थे …पूछिये उन्होंने क्या किया था उसे संगठन से निकालने के लिये।<br />और हां नरेन्द्र मोदी का प्रचार करने वाली मायावती का समर्थन मैं नहीं कर सकता… किसी भी आरोप की कीमत पर्।<br /><br />अर्जुन सिंह और पीडब्ल्यू ए के संबंधों पर तो विस्तार से लिखा है मैने समयांतर में ही…पर आप क्यों पढेंगे? जैसे मै किसी की इज़्ज़त इसलिये नहीं करता कि वह बाभन है वैसे ही दलित उपनाम होने भर से मै किसी को सर्टिफ़िकेट नहीं देता। ना ही आप जैसों के सर्टिफ़िकेट की परवाह करता हूं।<br /><br />पुरस्कारों के लिये चक्कर लगाने वालों से सवाल पूछिये … आप उन चारणों में से एक के ही उपचारण है। अब आपके लिये आदित्यनाथ के भी रास्ते खुल गये हैं। इस बन्दे तो जीवन में कभी पुरस्कार ना लेने की खुली घोष्णा की है वह भी तब जब अगले चार महीने में चार किताबेम आनी हैं।<br /><br />ग्रोवर साहब की इज़्ज़त करता हूं उनके पुराने स्टैण्ड की वज़ाह से… आप जैसों को उन्हीं की भाषा में जवाब देना आता है। यह मत समझिये कि अपने उपनाम के अपराधबोध में दबकर डर जाऊंगा। <br /><br />स्वीकार आप कीजिये अपने परले दर्जे के चमचे, मौकापरस्त और कुण्ठित मानसिकता के होने के।Ashok Kumar pandeyhttps://www.blogger.com/profile/12221654927695297650noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-4199775936001289890.post-28842753177367085222009-07-30T18:28:14.984+05:302009-07-30T18:28:14.984+05:30हां बहस काफ़ी कटु हो चुकी है…शायद अब इसे और आगे ज़ार...हां बहस काफ़ी कटु हो चुकी है…शायद अब इसे और आगे ज़ारी रखना उचित नहीं होगा।<br />आपसे मेरी कोई व्यक्तिगत दुश्मनी नहीं…बल्कि आप का तो मैं सम्मान ही करता हूं।<br />विचारधारा कभी स्पेस की सीमा नहीं बनाती।<br />आप भी मेरी बातों पर दुबारा सोचियेगा ठंढे दिमाग से और मै भी…शायद कोई रास्ता निकले।<br /><br />हां मेरा वाला कोई नहीं…कभी मिले तो आराम से बात होगी। यह फिर भी पब्लिक स्पेस है।<br /><br />आशा है संवाद बना रहेगा।<br />9425787930Ashok Kumar pandeyhttps://www.blogger.com/profile/12221654927695297650noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-4199775936001289890.post-77823928222704965142009-07-30T18:23:20.474+05:302009-07-30T18:23:20.474+05:30मैने बात अपनी औकात की की थी…आप गौर से पढें।
जिस सू...मैने बात अपनी औकात की की थी…आप गौर से पढें।<br />जिस सूची मे उदय जी जैसे बडे लेखक हों वहां शामिल होने की मेरी औकात होगी कि नहीं यह आपको तय करना है।Ashok Kumar pandeyhttps://www.blogger.com/profile/12221654927695297650noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-4199775936001289890.post-39440035535127417272009-07-30T17:45:26.255+05:302009-07-30T17:45:26.255+05:30और जो एक वामपंथी सवर्ण ने जो प्रोफ़ेसर था और वामपंथ...और जो एक वामपंथी सवर्ण ने जो प्रोफ़ेसर था और वामपंथी लेखक <br />संघ की राष्ट्रीय कार्यकारिणी में है, देवी शंकर अवस्थी पुरस्कार पा चुका है, जब वह एक निचली जाति की शोध छात्रा का यौन शोषण करता है, तो वह किस भौतिकवादी दर्शन के तहत ऐसा करता है?<br />उस पर कोई पांडे या दूसरा 'वामपंथी' क्यों निंदा, भर्त्सना नहीं करता।<br /><br />दूसरा यह कि कुंवर अर्जुन सिंह किस मार्क्सवादी विचारधारा के मुताबिक ऐसे जातिनिर्पेक्ष धर्मनिरपेक्ष शख्सियत बन जाते हैं कि सारा वामपंथ उनके दरबार में हाज़िरी लगाता है? भोपाल गैस त्रासदी, चुरहट लाटरी कांड, केरवा डैम कांड, मौनी बाबा की भक्ति और पी.एम. की कुर्सी पाने के लिए तंत्र-मंत्र और सोनिया की शर्मनाक चाटुकारिता के बाद भी उनकी चरणामृत पीते हुए पद और पुरस्कार हथियाते रहते हैं, उसके पीछे कौन सी आइडियोलाजी है...?<br /><br />आखिर आप लोग ईमानदारी से स्वीकार क्यों नहीं कर लेते कि आप लोग कट्टर हिंदूवादी जातिवादी हैं और आप मार्क्सवाद का मुखौटा अपने असली चेहरे को ढंकने के लिए कर रहे हैं?neeraj pasvanhttps://www.blogger.com/profile/16156132696941118927noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-4199775936001289890.post-79344860551280738722009-07-30T17:08:30.407+05:302009-07-30T17:08:30.407+05:30अब आते हैं औकात पर। चलिए कबीर और रहीम के ज़माने में...अब आते हैं औकात पर। चलिए कबीर और रहीम के ज़माने में तो पुरस्कार बांटने वाली संस्थाओं का आविष्कार नहीं हुआ था । पर क्या मुक्तिबोध, धूमिल और निराला के वक्त में भी सूची बनाने वाली महानताओं के दिमागों को लकवा मार गया था ? जिस ओशो रजनीश को कभी कोई पुरस्कार नहीं मिला उनके पास भी आपके न जाने कितने परमश्री और भरमभूषण चक्कर लगाते थे। कितने आज भी उन्हीं की किताबों से काम चला रहे हैं। औकात की बात करके आपने वर्णवाद, रंगवाद और भेदभाव वादी मानसिकता की कलई पूरी तरह से खोल ली है। क्या हौती है औकात ? कि राष्ट्रपति के साथ दो बार चाय पी है कि नहीं ! कि चार संपादकों के बीच उठना-बैठना है कि नहीं ! कि प्रकाशक आपको नए लेखकों के शोषण की कीमत पर दारु पिलाता है कि नहीं ! कि आप किसी ऐसे पद पर है कि नहीं कि आप भी ‘बदले’ में दूसरे का कुछ फायदा करा सकें कि नहीं ! औकात तो इसी से पता चल जाती है कि जो भारत भूषण पुरस्कार सिर्फ एक कविता के आधार पर दिया जाता है वह आजतक किसी अनजाने-अदेखे लेखक को मिलता नहीं देखा गया। उसमें भी न जाने कौन-कौन सी गिनतियां गिनी जाती हैं ! यही पुरस्कार योरप के किसी देश में होता तो हर वर्ष एक नितांत नयी खोज सामने आती। जो भी हमारे पुरस्कारों की हकीकत जान लेगा उसके लिए पुरस्कार लेने वाला विश्वसनीय नहीं संदिग्ध होता जाएगा।<br />पुरस्कार बंद करने की शुरुआत भी उदय ही करें, ऐसा आप चाहते हैं। आप वही कर रहे जो एक दफतर के सारे निकम्मे लोग उस दफतर में काम करने वाले एकमात्र आदमी पर अपना सारा काम लाद कर करते हैं। वही मैंने पहले भी कहा कि किस तरह का व्यवहार यहां लोग आत्मालोचना करने वाले और माफियां मांगने वाले के साथ करते हैं।<br />आप मुझे गायत्री परिवार का कहें, सावित्री परिवार का कहें या किसी और परिवार का कहें, आपकी समझ है। मेरा ‘परिवारबाज़ी’ में विश्वास ही नहीं है। किसी विचारधारा से मेरा ऐसा रिश्ता कभी रहा ही नहीं जैसा किसी पालतू जानवर का अपने, गेंद फेंकर उठालाने का खेल सिखाने वाले मालिक से होता है। अगर किसी आर.एस.एस वाले को शुरु से दो बाई दो का का वैचारिक स्पेस मिला है और वामपंथी को छः बाई छः का मिला है तो उसमें बहुत खुश होने की ज़रुरत इसलिए नहीं है कि दोनों ही दिए गए स्पेस से काम चला रहे हैं। उसको खोलने-बढ़ाने के लिए न इसने कुछ किया न उसने। दोनों में अंतर क्या हुआ फिर !<br />इस सब पर विचार कीजिए न !Sanjay Groverhttps://www.blogger.com/profile/14146082223750059136noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-4199775936001289890.post-55042502844548117532009-07-30T17:07:56.799+05:302009-07-30T17:07:56.799+05:30अशोक जी, मैं फिर से आपसे गुजारिश करुंगा कि मेरे सव...अशोक जी, मैं फिर से आपसे गुजारिश करुंगा कि मेरे सवाल एक बार फिर से पढ़ें और खुद फैसला करें कि आपने जो कहा वो जवाब हैं या टालमटोली है, बात को इधर-उधर कर देने की कोशिश है। <br />क्या आप कल्पना कर सकते हैं कि विशेषांक चित्रा मुदगल और गगन गिल पर निकले और आधी पत्रिका अ. न. मुदगल या निर्मल वर्मा के चरित्र-हनन से भरी पछ़ी हो। क्या कभी निर्मल और गगन या चित्रा और अ.न. क ेलेखन की परस्पर ऐसी तुलना देखने में आयी है जैसी राजेंद्र और मन्नू क ेलेखन की की जा रही है ? लगता यही है कि बहस के बहाने, दलितों और स्त्रियों के लिए साहित्य में राजेंद्र यादव द्वारा बनाए माहौल का क्रेडिट छीनने की कोशिश की जा रही है। ऐसी छल-प्रधान रणनीतियों की मूल प्रतियां इतिहास में आसानी से तलाशी जा सकती हैं। <br /><br />देशकाल. काम पर मैंने यादवजी से एक सवाल पूछा था, उसे भी यहां रख रहा हूं:<br />’’’’’’’’’प्रश्न: क्या हिंदी साहित्य-समाज में आप अकेले ऐसे साहित्यकार हैं जिसने पत्नी को सताया (?) व अन्यत्र संबंध रखे !? जरुर आपसे भी बड़े-बड़े धुरंधर रहे होंगे। फिर सारी ‘‘ख्याति’’ आपके हिस्से क्यों आती है !? क्या इसकी वजह कहीं अन्यत्र छुपी है ? क्या यह संभव नहीं कि कुछ लोग बहुत ही शातिराना ढंग से मन्नूजी का इस्तेमाल कर रहे हों !?<br /><br />उत्तर: ज़रुर कर रहे हैं, मगर इसके पीछे कारण व्यक्तिगत नहीं हैं। मेरे खिलाफ जो एक विरोधी वातावरण पिछले दसियों साल से बना है, उसी मानसिकता में ये लोग मेरी कमज़ोरियां और कमियां तलाशा करते हैं और उन्हें ही बढ़ा-चढ़ाकर दिखाते हैं। धर्मवीर भारती, मोहन राकेश, कमलेश्वर हर किसी के संबंध अपनी पहली पत्नियों से बिगड़े ही नहीं बल्कि कोता भारती ने तो एक निहायत ही अपमानजनक पुस्तक ‘रेत की मछली’ लिख डाली। अगर मैं मन्नू के साथ अच्छे पति की तरह नहीं रह पाया तो क्या मुझे इस चुनाव का अधिकार नहीं कि अच्छे मित्र की तरह उसके साथ संबंध बनाकर रखूं, जो आज भी हैं। बाहर हम दोनों को साथ देखकर कोई सोच भी नहीं सकता कि हम अलग-अलग रहते हैं।’’’’’’’’’’’<br /><br /><br />मित्रवर, मन्नू जी ने आत्मकथा लिख दी और मौका आपके हाथ लग गया। आपने यह नहीं सोचा कि आत्मकथाएं आत्मस्वीकृतियां राजेंद्र यादव के आस-पास से ही क्यों ज़्यादा आती हैं ? ‘हंस’ का पाठक और लेखक ही क्यों इतना खुलकर लिखता-सोचता है !? कैसे बना है यह स्पेस ? <br />आप ले देकर एक दो बातें दोहरा रहे हैं। कि सभी पापी हैं तो क्या हुआ मेरे वाले 98 पापी जज रहेंगे और आपके वाले 2-3 पापी फांसी पाएंगे। दूसरे आप कह रहे हैं कि नाम लीजिए, नाम लीजिए। मज़े की बात यह है कि खुद आपको उदयप्रकाश और राजेंद्र यादव के अलावा तीसरा नाम नहीं सूझ रहा ! हिम्मत नहीं पड़ रही या पक्षधरता और गुट पहले से ही तय कर लिए हैं या तयशुदा एजेण्डे पर चल रहे हैं, यह तो आपको ही पता होगा। मैं तो खुद भी नाम ले रहा हूं और इसी वजह से अंशुमाली की तारीफ भी कर आया हूं। एक आदमी तो निकला जिसने उदय के साथ चार नाम और भी लिए। इसी घटना के समानांतर छत्तीसगढ़ कांड और हिंदी अकादमी कांड भी प्रगति पर हैं, लेकिन उदय के विरोधियों को खुजली तक नहीं हो रही ! क्यों कि वे उदय के विरोधी हैं, किसी सही-गलत के नहीं, इसलिए !? बंधुवर कितनी भी छिपायी जाए पर वजह वही है जिसके चलते वी पी सिंह को ऐतिहासिक गालियां मिलीं और आरक्षण विरोधी प्रदर्शनों में जूता पालिश करने और झाड़ू लगाने का नाटक करने जैसी निकृष्ट हरकतें की गयीं।Sanjay Groverhttps://www.blogger.com/profile/14146082223750059136noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-4199775936001289890.post-70150096797294862562009-07-30T09:00:03.809+05:302009-07-30T09:00:03.809+05:30हां पुरस्कार की ख़ूब कही।
चलिये आप ही अभियान चलाईये...हां पुरस्कार की ख़ूब कही।<br />चलिये आप ही अभियान चलाईये- और सबसे पहले उदय के पास आप प्रपोज़ल लेकर चाहिये- मैं अब भी दूसरा होने को तैयार हूं…हां उस सूची में शामिल होने की औकात है कि नहीं यह फ़ैसला आपको ही करना होगा।Ashok Kumar pandeyhttps://www.blogger.com/profile/12221654927695297650noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-4199775936001289890.post-60229069792699366872009-07-30T08:57:31.553+05:302009-07-30T08:57:31.553+05:30हां भाई लगता अभी भी है…अब ये भी साफ़ है कि सवाल हैं...हां भाई लगता अभी भी है…अब ये भी साफ़ है कि सवाल हैं ही नहीं। रेटोरिक है, वितण्डा है और जेनेरलाईजेशन्…इन सबके आड में निशाना कहीं और है। <br /><br />बात उदय जी के बहाने की जायेगी तो उन तक पहुंचेगी…और आपकी आस्था क प्रमाण है आपकी लेखनी से निसृत यह सच<br /><br />''कभी पत्नी मन्नू को सताने का आरोप कभी योगी से पुरस्कार के बहाने चिल्लपों। ''<br /><br />क्या मन्नू जी ने ख़ुद अपनी आत्मकथा में यह सब नहीं लिखा? क्या कोई इतना महान होता है कि उसके ख़िलाफ़ कुछ कहा ही नहीं जा सकता? मन्नू क्या साजिश कर रही हैं? लेखन में स्त्री विमर्ष और घर में सामंती व्यव्हार…क्या इस पर बात नहीं होनी चाहिये?आप की स्त्री विमर्ष की सीमा भी दिखती है जब मन्नू के लेखकीय योगदान को भूलकर आप पूछते हैं कि किस लेखक के पत्नी का इंटर्व्यू लिया गया? क्या महाभोज की लेखिका का परिचय सिर्फ़ राजेन्द्र यादव की पत्नी होना है? यही वह सोच का स्तर है जहां आप और राजेन्द्र यादव एक साथ बैठे नज़र आते हैं।<br /><br />और योगी से सम्मान लेना इतनी छोटी बात है कि उस पर हमारा विरोध बस चिल्ल-पों? कहीं ओशो वगैरह के चक्कर लगाते आप गोरखनाथ जाकर हिन्दूवाहिनी वालों से तो नहीं मिल आये? वहां हिन्दू होना अभी काफ़ी है गोत्र वे आराम से पता कर लेंगे।<br />एक पूरे विरोध के आख्यान को चिल्लपों कहकर ख़ारिज़ कर देना आपकी निगाहों के असली निशाने का साफ़ पता देता है भाई। भक्ति सगुण ना सही निर्गुण की ही सही। लक्ष्य तो एक ही है।<br /><br />मै जिस विचारधारा से हूं उससे प्रभावित नही उसका अनुगामी हूं … पार्टी फिलहाल नहीं कोई मेरी पर वामपंथ ही मेरी विचारसरणी का निर्माण करता है। भौतिकवाद को समझे बिना कोई सच्चे अर्थों में नास्तिक या तार्किक हो सकता है… मैं नहीं मानता। और मेरी विचारधारा कुंआ नहीं एक विशाल आकाश है जिसका चक्कर लगाने के लिये पंखों और हौसलों दोनों में ताक़त चाहिये।<br /><br />आप सब-सब कहकर परेशान है- तो लीजिये न नाम? कौन रोकता है? या बताईये पहले कौन सी घटना के बाद स्टैण्ड लिया और किसी ने साथ नहीं दिया? मै बताउंगा तो कहेंगे व्यक्तिगत हो गया।<br /><br />व्यक्तिगत बातें इस लिये कि सब पर जो हमले हैं वे उनकी व्यक्तिगत शुचिता को लेकर ही हैं।तो लगा अब हिन्दी में बहस करने के लिये प्रमाणपत्र लेकर आना पडेगा।<br /><br />यह जो गायत्री परिवार वाली नैतिकता है ना दर असल व्यक्ति और समाज को गहरे अपराधबोध में डालकर भविष्य के अपराधों को खुला रास्ता देने के लिये है…आप की तर्कप्रणाली उसी पर आधारित है।<br /><br />स्वतंत्रता सोच के लिये आधार देती है और स्वछंदता किये को ज़ायज़ ठहराने के लिये तर्कों के निर्माण का… विचार ख़ारिज़ करने वालों की यही समस्या है…राजेन्द्र यादव की, उदय प्रकाश की और आपकी भी।Ashok Kumar pandeyhttps://www.blogger.com/profile/12221654927695297650noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-4199775936001289890.post-10402353334074104412009-07-29T23:22:35.058+05:302009-07-29T23:22:35.058+05:30अशोकजी,
भक्ति चाहे भगवान की हो, व्यक्ति की हो, वि...अशोकजी, <br />भक्ति चाहे भगवान की हो, व्यक्ति की हो, विचारधारा की हो, हर हाल में खतरनाक होती है। राजनीतिक विचारधाराओं में सबसे ज्यादा प्रभावित मैं वामपंथ से रहा हूं। उसके अलावा मैं आर्यसमाज, ओशो रजनीश, गांधी जी से लेकर बाबा साहेब तक हर विचारधारा में आता-जाता हूं, मगर रुकता वहीं तक हूं जितनी वहां तार्किकता, वस्तुपरकता और विवेकशीलता दिखाई देती है। एक तरफ तो आपको यह संभावना भी अजीब लग रही है कि कहीं मैं भी विचारधारापरक चैखटे तोड़ने का तोड़ने का हिमायती तो नही ंतो दूसरी तरफ आप मुझे भक्त भी बता रहे हैं।<br />पुरस्कार बंद करने को लेकर मैंने जो कुछ कहा उसमें कौन-सी बात उदय के हक में जाती है ? आप अपनी विचारधारा-भक्ति के चलते इस बात पर भी ध्यान नहीं दे पाए कि मोहल्ला को उदय के रंगीन फोटो सप्लाई करने को लेकर मैंने जो शक ज़ाहिर किया उसके दायरे में उदय भी आ जाते हैं कि कहीं यह बहस प्रायोजित तो नहीं और कहीं फोटो खुद उदय के यहां से तो नहीं आ रहे। और मैं भक्त होता तो ‘‘उदय-उदय’’ न लिख रहा होता, ‘‘उदयप्रकाशजी-उदयप्रकाशजी‘‘ का जप कर रहा होता। इस ‘पावन परंपरा’ से तो आप भी भली-भांति परिचित होंगे।<br />और, अभी आपसे पहले ‘मोहल्ला’ पर अंशुमाली की सराहना में जो टिप्पणी छोड़कर आया वो ! उसमें अंशुमाली ने उदय और उनके नए दोस्त अशोक वाजपेयी से लेकर प्रभाष जोशी तक किसी को नहीं बख्शा। हे राम ! मैंने तो अपने गुरु के सखा के खिलाफ टिप्पणी की सराहना कर दी। अच्छा मेरे पास तो इतने साधन नहीं हैं, आप ही पता करके बताईए कि रस्मन ही सही प्रभाष जोषी, धर्मवीर भारती से लेकर अशोक वाजपेयी तक किसे माफी मांगनी पड़ी थी?<br />आप बार-बार एक ही बात कह रहे हैं कि अगर सब पापी हैं तो kya कोई भी किसी से जवाब न मांगे ! और मैं फिर-फिर कह रहा हूं कि सारे पापियों के एवज में बाकी पापियों द्वारा तय कर दिए गए दो-तीन पापियों को ही बार-बार फांसी क्यों दी जाए भला !? क्यों कि उनका बहुमत है इसलिए !? क्यों कि उनकी मौज की छनती आ रही है इसलिए !? <br />बात ये है कि अगर उदय और राजेंद्र यादव जैसे लोग दलितों-पीढ़ितो-वंचितों-स्त्रियों की बात छोड़ दे ंतो उनके भी सात खून माफ होंगे जैसे कि बाकी पापियों के होते हैं। चिढ़ कोई और है और बहाने कोई और हैं। कभी विदेशी साहित्य से चोरी का आरोप लगाया जाता है कभी पत्नी मन्नू को सताने का आरोप कभी योगी से पुरस्कार के बहाने चिल्लपों। और किन लेखकों की पत्नियों के इण्टरव्यू लिए गए और विशेषांक निकाले गए !? इसीलिए मैंने कहां कि निगाहें कहीं और हैं निशाने कहीं और।<br />जिस तरह से आपने विचारधारा और उससे जुड़े लोगों से लौ लगा ली है उसी रौ में आप कह रहे हैं कि उदय पुरस्कार लेना बंद कर दें......अरे मेरे भाई पुरस्कार बंद करने की बात मैं उठा रहा हूं उदय नहीं। और यह महज आपकी कल्पना है कि उदय व मेरे बीच भगवान-भक्त जैसा कोई अजीबो-गरीब संबंध है।<br />और किसी योगी या इमाम से मेरा लेना-देना तो बहुत दूर की कौड़ी है मैं तो इतना ‘धार्मिक‘ हूं कि आज तक अपना गोत्र भी नहीं पता।<br />और पार्टी या विचारधारा से मिली नास्तिकता से बहुत आगे की चीज़ होती है अपने तर्क और विवेक से आयी नास्तिकता। ऐसी नास्तिकता ही आपको विचारधाराओं के कुंओं से बाहर निकाल सकती है।<br />और जिस दिन मायावती जी ने एस. के. मिश्रा को आगे करना शुरु किया था उन्हीं दिनों मैंने अपने एक दलित मित्र से कहा था कि माया अब ज़रुर धोखा खाएंगी और ज़्यादा दिन नहीं चलेंगीं। अंदर की बात तो पता नहीं पर अंशतः मेरी बात सच हुई। मायावती वर्ण राजनीति की माडल हैं कि नहीं यह जुदा बात है। पर जब हजारों साल के भरे-खाए-अघाए लोग भर-भर कर भ्रष्टाचार और जुल्म करते हैं तो मायावती जी को अलग से गलियाते रहना किस मानसिकता का द्योतक है ?<br />बात फिर वही आती है....कहीं पे निगाहें, कहीं पे निशाना ...<br />आप अपने व्यक्तिगत जीवन को बीच में क्यों ला रहे हैं ? क्या यह आपकी-मेरी व्यक्तिगत लड़ाई है ? ज़रुर आपने भगतसिंह को लेकर बहुत कुछ किया होगा और बहुत कुछ करेंगे। पर वह मेरे सवाल का जवाब नहीं है, मेरे दोस्त !<br /><br />क्या अभी भी आपको लगता है कि आपने मेरे सवालों का जवाब दे दिया था !?Sanjay Groverhttps://www.blogger.com/profile/14146082223750059136noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-4199775936001289890.post-43188152112732532822009-07-29T20:21:43.288+05:302009-07-29T20:21:43.288+05:30हां यह कहने कामुझे नैतिक आधार है…मेरी ज़िंदगी के कि...हां यह कहने कामुझे नैतिक आधार है…मेरी ज़िंदगी के किसी पन्ने पर अगर वे छिटें दिख जायें तो ज़रूर दिखायें।<br /><br />और नास्तिकता और भगत सिंह के विचार दोनों का मेरा संगठन जम के प्रचार करता है। 14 अगस्त से उनके जन्म दिवस को युवा दिवस घोषित करने, उनके लेख पाठ्यक्रम में शामिल करने की मांग को लेकर हम हस्ताक्षर अभियान चलाने जा रहे हैं।Ashok Kumar pandeyhttps://www.blogger.com/profile/12221654927695297650noreply@blogger.com