tag:blogger.com,1999:blog-4199775936001289890.post4153604832951138560..comments2023-09-13T20:34:42.779+05:30Comments on saMVAdGhar संवादघर: आईए अफ़वाह फ़ैला दें कि विष्णु नागर सांप्रदायिक हैंSanjay Groverhttp://www.blogger.com/profile/14146082223750059136noreply@blogger.comBlogger10125tag:blogger.com,1999:blog-4199775936001289890.post-79750930019627400822010-10-08T23:43:48.622+05:302010-10-08T23:43:48.622+05:30ये तो वही बात हुयी "अश्वत्थामा हतः"...इस...ये तो वही बात हुयी "अश्वत्थामा हतः"...इसके जितने मन आये अर्थ निकाल लो तो निकाल लिया गया... आप तो महाराज महाभारत मचवा दोगे.muktihttps://www.blogger.com/profile/17129445463729732724noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-4199775936001289890.post-81112713750061081582010-09-30T11:05:52.322+05:302010-09-30T11:05:52.322+05:30संजय की दिव्य दृष्टि ने क्या क्या न गुल खिलाये !संजय की दिव्य दृष्टि ने क्या क्या न गुल खिलाये !ushmahttps://www.blogger.com/profile/16614535125485445425noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-4199775936001289890.post-55172721499701231232010-09-27T22:47:49.914+05:302010-09-27T22:47:49.914+05:30लेख मैने पढ़ा नहीं.मैं सिर्फ इतना कहना चाहता हूँ को...लेख मैने पढ़ा नहीं.मैं सिर्फ इतना कहना चाहता हूँ कोई भी फतवा जारी करने वाले अधिकारी को अनावश्यक सवालों पर चाहे गये फतवों से पेर्हेज करना कहिये .वोह इंकार नहीं कर सकता परंतु स्वविवेक समझा कर मसले से टाल तो सकता है .जिसके कारण अनावश्यक विवाद ही पैदा ना हों.एक स्टिंग ऑपरेशन में फतवे बिकते हुवे भी दिखाए गये है.<br />और भी गम हैं कोम में फतवे जारी करने के सिवा( साहिर साब से माफ़ी)shaffkathttps://www.blogger.com/profile/06852895490171770181noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-4199775936001289890.post-48767359981474029412010-09-27T14:55:47.769+05:302010-09-27T14:55:47.769+05:30लेखको को लिखते वक्त समाज का ध्यान रखना चाहिये खासक...लेखको को लिखते वक्त समाज का ध्यान रखना चाहिये खासकर संप्रदाय के मामले में...उनके लेखन से समाज में सुधार हो न कि अव्यवस्था...Anonymousnoreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-4199775936001289890.post-85607998837177966452010-09-27T11:05:37.180+05:302010-09-27T11:05:37.180+05:30संजय भाई, आप दिन ब दिन बहुत शातिर होते जा रहे हो, ...संजय भाई, आप दिन ब दिन बहुत शातिर होते जा रहे हो, धार्मिक लोगों का कुछ तो ख्याल किया करो। :)<br /><br />हुजूर, वह लघु कथा कहाँ है?Dr. Zakir Ali Rajnishhttps://www.blogger.com/profile/03629318327237916782noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-4199775936001289890.post-13430446552343972762010-09-26T21:04:14.681+05:302010-09-26T21:04:14.681+05:30@शरद कोकास
Aapki sabhi baatoN se sahmati hai...Pu...@शरद कोकास<br /> Aapki sabhi baatoN se sahmati hai...Pura na padhne ko lekar kiye gaye Maasum vyangya se bhi..:)Sanjay Groverhttps://www.blogger.com/profile/14146082223750059136noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-4199775936001289890.post-42673559043300983122010-09-26T20:35:43.377+05:302010-09-26T20:35:43.377+05:30नागर जी न केवल बहुत अच्छे व्यंगकार हैं बल्कि बेहद ...नागर जी न केवल बहुत अच्छे व्यंगकार हैं बल्कि बेहद संवेदंशील कवि भी हैं । और ज़माने से कुरितियों के खिलाफ लिखते आ रहे हैं । उनकी ईशवर की कहानियाँ आपने पढ़ी ही होंगी । अब उससे वे सांप्रदायिक सिद्ध नही हुए तो इससे क्या होंगे । बहरहाल आपका भी यह व्यंग्य अच्छा है ।<br />और पूरा न पढने की बात तो पूरा कभी किसी को पढा ही नही गया , न चार्वाक को , न मार्क्स को , न बुद्ध को , न भिष्म साहनी को , न सआदत हसन मंटो को , न इस्मत चुगताई को , न ही धर्मग्रंथों को ... और भैया आजकल तो ब्लॉग भी पूरा नही पढते लोग ।शरद कोकासhttps://www.blogger.com/profile/09435360513561915427noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-4199775936001289890.post-24803185021813716252010-09-26T20:06:03.406+05:302010-09-26T20:06:03.406+05:30अगले भाग का लिंक :
http://samwaadghar.blogspot.co...अगले भाग का लिंक :<br /><br />http://samwaadghar.blogspot.com/2010/09/blog-post_3030.htmlSanjay Groverhttps://www.blogger.com/profile/14146082223750059136noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-4199775936001289890.post-62981415277946386662010-09-26T16:39:23.663+05:302010-09-26T16:39:23.663+05:30समस्या धर्म (और अगर इस्लाम के लिये मज़्हब कहना ...समस्या धर्म (और अगर इस्लाम के लिये मज़्हब कहना जरूरी हो तो मज़्हब) की नहीं संस्कृति की है, उस संस्कृति की जो आज ठेकेदार बनी हुई है धर्म परिभाषित करने की। ये व्याख्यावीर और बयानवीर अगर धर्म को समझते होते तो न ऐसी व्याख्यायें प्रस्तुत करते न ऐसे बयान देते। इनके कृत्यों के जो परिणाम होते हैं वो किसे भुगतने होते हैं। नीरज भाई का एक खूबसूरत शेर है:<br />आप तो सो जायेंगे महफ़ूज़ बंगलों में कहीं<br />खाक कर देंगी शहर, अल्फाज़ की चिंगारियॉं।<br />अब अगर अल्फ़ाज़ पर ऐसे लोगों का अधिकार हो जाये जो शहर जलाने में ही अपना स्वार्थ देखते हैं तो .......तिलक राज कपूरhttps://www.blogger.com/profile/03900942218081084081noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-4199775936001289890.post-19731466588562572392010-09-26T14:18:19.367+05:302010-09-26T14:18:19.367+05:30अगली कड़ी का इंतज़ार! बहुत अच्छी प्रस्तुति। हार्दि...अगली कड़ी का इंतज़ार! <b>बहुत अच्छी प्रस्तुति। हार्दिक शुभकामनाएं!</b><br /><a href="http://manojiofs.blogspot.com/2010/09/3.html" rel="nofollow">काव्यशास्त्र (भाग-3)-काव्य-लक्षण (काव्य की परिभाषा), आचार्य परशुराम राय, द्वारा “मनोज” पर, पढिए! </a>मनोज कुमारhttps://www.blogger.com/profile/08566976083330111264noreply@blogger.com