tag:blogger.com,1999:blog-4199775936001289890.post2136034910979224481..comments2023-09-13T20:34:42.779+05:30Comments on saMVAdGhar संवादघर: आध्यात्मिकता अमीरों की ट्रांक्विलाइज़र है.Sanjay Groverhttp://www.blogger.com/profile/14146082223750059136noreply@blogger.comBlogger45125tag:blogger.com,1999:blog-4199775936001289890.post-869613942670052652010-07-14T19:48:01.936+05:302010-07-14T19:48:01.936+05:30is saNdarbh me 3 aur mahatvapurn link :-
1.
http:...is saNdarbh me 3 aur mahatvapurn link :-<br /><br />1.<br />http://nastikonblog.blogspot.com/2010/04/blog-post_24.html<br /><br />2.<br />http://nastikonblog.blogspot.com/2010/05/blog-post.html<br /><br />3.<br />http://nastikonblog.blogspot.com/2010/05/blog-post_15.htmlSanjay Groverhttps://www.blogger.com/profile/14146082223750059136noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-4199775936001289890.post-77910387503348897902010-04-26T14:18:58.386+05:302010-04-26T14:18:58.386+05:30कई मित्र तर्क देते हैं कि कई वैज्ञानिक भी धर्म/ईश्...कई मित्र तर्क देते हैं कि कई वैज्ञानिक भी धर्म/ईश्वर में आस्था रखते थे। इसका जवाब बहुत ही आसान है। एक व्यक्तित्व आपका वह होता है जो आपके परिवार, परिवेश, समाज और संस्कारों से मिला होता है। अगर कोई आस्तिक परिवार में पैदा हुआ है तो सहज है कि वह आस्तिक होगा । एकाध अपवाद की बात अलग है। एक दूसरा व्यक्तिव है जो आपको प्रकृति से मिलता है। जिसके चलते कोई गायक, चिंतक, लेखक, क्रिकेटर या वैज्ञानिक आदि बनता है। साफ़ है कि इनमें से कोई अगर नास्तिक घर में पैदा हुआ तो वो नास्तिक गायक हो जाएगा। कोई आस्तिक घर में पैदा हुआ तो आस्तिक वैज्ञानिक हो जाएगा। वैज्ञानिक भी मेरी समझ में कम-अज़-कम दो तरह के तो होते ही हैं, ज़्यादा भी हो सकते हैं। एक तो रुटीन वैज्ञानिक होते हैं या अपनी नौकरी के चलते वैज्ञानिक होते हैं। दूसरे वे होते हैं जो हर वक्त उखाड़-पछाड़, खोज-बीन या सवाल-जवाब में लगे रहते हैं। ऐसे ही वैज्ञानिक खोजें या आविष्कार करते हैं। सभी नहीं करते। अब जो लोग इसलिए वैज्ञानिक हो गए कि कोई सबजेक्ट तो पढ़ना ही है या कोई नौकरी तो करनी ही है या और कोई विकल्प नहीं है तो यही सही। उनसे बहुत ज़्यादा उम्मीदें रखनी भी नहीं चाहिएं, हां अपवाद यहां भी हो सकते हैं।<br /><br />एक नास्तिक अपनी ज़िंदगी धर्म या आध्यात्म के बिना आसानी से गुज़ार सकता है बशर्ते कि कथित आस्तिक क़दम-क़दम पर उसे परेशान न करें। मगर एक भी चमत्कारी बाबा आज की तारीख में बिना विज्ञान के एक कदम भी नहीं चल सकता। उसकी धोती, उसका चश्मा, उसका माइक, उसके ट्रक, उसके ए.सी., उसका फोटू और उसमें से निकलने वाला पाउडर, उसके मुंह से निकलने वाले आर्टीफिशयल लड्डू, उसके स्टाल, उसके पंडाल, उसका सिहांसन, उसके नकली फव्वारे और पिचकारियां, एक भी चीज़ ऐसी नहीं है जो बिना विज्ञान के बनी हो। सब कुछ विज्ञान का और विज्ञान को ही गालियां। अब इसे क्या कहें ? इस महान भावना के लिए जो भी शब्द आपके दिमाग में आता हो कृपया ख़ुद ही जोड़ लें।<br /><br />http://sb.samwaad.com/2009/12/blog-post_09.htmlSanjay Groverhttps://www.blogger.com/profile/14146082223750059136noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-4199775936001289890.post-23894069790796680832009-06-29T19:50:36.253+05:302009-06-29T19:50:36.253+05:30बड़े शौक से सुन रहा था ज़्माना,
‘हमीं’ सो गए दासतां...बड़े शौक से सुन रहा था ज़्माना,<br />‘हमीं’ सो गए दासतां कहते-कहतेSanjay Groverhttps://www.blogger.com/profile/14146082223750059136noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-4199775936001289890.post-56517326468105467212009-06-27T20:20:59.746+05:302009-06-27T20:20:59.746+05:30एक सार्थक बहस चलाने के लिये आभारएक सार्थक बहस चलाने के लिये आभारAshok Kumar pandeyhttps://www.blogger.com/profile/12221654927695297650noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-4199775936001289890.post-58536663286835900332009-06-10T12:27:15.443+05:302009-06-10T12:27:15.443+05:30हम वहां (नहीं) हैं जहां से हमको भी-
कुछ हमारी खबर ...हम वहां (नहीं) हैं जहां से हमको भी-<br />कुछ हमारी खबर नहीं आती।<br /><br />मैं किसी ईश्वरीय दुनिया में नहीं हूं, यहीं हूं अपने यथार्थ में। एक तो कुछ चक्करों में उलझा हूं, दूसरे बार-बार एक जैसे प्रश्नों (?) का उत्तर (!) देने में कोफ्त तो होती ही है। लेकिन प्रीतिश जी के रोमांच और अति उत्साह को भंग करना इसलिए अति आवश्यक है कि चुप रहने से उनकी गलतफहमियां बढ़ती हैं और दुनिया में अच्छे, मौलिक, तार्किक, संवेदनशील और अपनी सोच रखने वालों या अपनी शत्र्तों पर जीने वाले लोगों का जीना लगातार मुश्किल होता चला जाता है।<br /><br />जल्दी ही.....Sanjay Groverhttps://www.blogger.com/profile/14146082223750059136noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-4199775936001289890.post-73912548635330642022009-06-09T14:26:05.740+05:302009-06-09T14:26:05.740+05:30भाई संजय ग्रोवर जी
आप अचानक कहाँ चले गए ?
आपके ज...भाई संजय ग्रोवर जी <br />आप अचानक कहाँ चले गए ? <br />आपके जवाब का मुझे इन्तजार है ! <br /><br />मेरी कलम कुलबुला रही है .... उँगलियों में ऐंठन हो रही है किन्तु भाई अब मैं और पंगे नहीं ले सकता ! यहाँ बहुत बदनाम हो चुका हूँ ! जाने कितनों को नाराज कर चूका हूँ ! सबसे बड़ी बात तो यह है कि मैंने माडरेशन भी आँन नहीं किया हुआ है ! लोग आते हैं और बिना अपना नाम-पता बताये गालियाँ देकर भाग जाते हैं !<br /><br />मुझे इन गालियों से कोई फर्क नहीं पड़ता ,,,, वो क्या है न ग्रोवर साहब मुखालफत से भी कभी-कभी शख्सियत संवारती है ! <br /><br />तो भैया मैं तो आदी हूँ लेकिन अन्य लोगों का ख्याल रखना पड़ता है ! <br /><br />कृपया आप आयें और श्री एक हजार आठ माननीय प्रीतीश बारहठ जी की शंकाओं का यथोचित समाधान प्रस्तुत करें ! <br />कह इसलिए रहा हूँ , क्योंकि मुझे भली-भांति मालूम है कि आप पूर्णतयः सक्षम हैं !<br /> <br />आपकी प्रतीक्षा में <br /><br /><b><a href="http://aajkiaawaaz.blogspot.com" rel="nofollow"> आज की आवाज </a></b>प्रकाश गोविंदhttps://www.blogger.com/profile/15747919479775057929noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-4199775936001289890.post-14087922726798974112009-06-06T22:14:45.455+05:302009-06-06T22:14:45.455+05:30संजयजी तो आपको जवाब जब देंगे, तब देंगे और चूंकि मै...संजयजी तो आपको जवाब जब देंगे, तब देंगे और चूंकि मैं उनका ब्लाग शुरु से पढ़ रहा हूं इसलिए जानता हूं कि बखूबी देंगे। पर जरा दोचार ज़रुरी बातें मुझसे भी कर लीजिए। यह जो आपने साधन वगैरह की बात छेड़ी है, क्या आपको पता है कि आपने ईश्वर तक को अपना साधन बना लिया है !? यह जो ईश्वर के नाम पर आप करते फिरते हैं, इसकी सहमति/अनुमति आप ईश्वर से कैसे, कब, कहां लेते हैं, जरा बताएंगे ? उसको प्रमाणित करेंगे ? ईश्वर अपने विचार आपके पास इम्पलीमेंटेशन के लिए बाय ईमेल भेजता है या कोरियर से ? या फोन करता है आपको ? आपने ईश्वर को अपना साधन तो क्या, सवारी बना लिया है ? उसके नाम पर अयाशियां कर रहे हैं, लोगों को सता रहे हैं। कसम है मुझे इंसानियत की, अगर मैं ईश्वर होता, चैराहे-चैराहे आप जैसों की पोल खुलवा देता कि कोई लेना-देना नहीं मेरा इस आदमी के साथ। मेरे नाम पर यह ठग रहा है लोगों को, खून चूस रहा है गरीबों का। जिसे इंसानियत की ही कोई प्रतीति नहीं उसे मेरी अनुभूति क्या होगी !?<br />और यह जो आप जावेद अख्तर के पीछे लगे हैं कि फिल्मवालों को कुछ नहीं कहते, मिंयामिट्ठूजी, जरा 2005 में दिए गए इसी व्याख्यान की चंद पंक्तियां पढ़ लीजिए:-<br />@@@@@@@@@@@@तुलसीदास ने रामचरितमानस की रचना की. रामानंद सागर ने टेलीविज़न धारावाहिक बनाया. रामायण दोनों में है, लेकिन मैं नहीं सोचता कि तुलसीदास और रामानंद सागर को एक करके देख लेना कोई बहुत अक्लमन्दी का काम होगा.रामानंद सागर ने अपने धारावाहिक से करोड़ों की कमाई की. मैं उन्हें कम करके नहीं आंक रहा लेकिन निश्चय ही वे तुलसी से बहुत नीचे ठहरते हैं.@@@@@@@@@@@@<br />अब बताईए कि रामानंद सागर फिल्मकार नही ंतो क्या तुलसीदास हैं ? अमिताभ बच्चन का उदाहरण संजय जी दे ही चुके हैं, संभवतः आगे और भी दें। अच्छा अच्छा, आप चाहते हैं कि जावेद अख्तर फिल्मवालों का विरोध उन मुद्दों पर करें जिन पर आप चाहते हैं, (आपने कुछ उदाहरण दिए भी हैं) भले ही उन मुद्दो से जावेद का अपना कोई विरोध न हो । क्या कहने आपकी राजसी शान के। ऐसा कीजिए न, कि अपने फोन नं. और अन्य संपर्क-सूत्र वगैरह अपने किसी साधन के हाथ जावेद को भिजवा दीजिए। जब उन्हें विरोध करना हुआ करेगा आपसे सलाह ले लिया करेंगे। क्योंकि उनमें अपना तो दिमाग है नहीं, सारी दार्शनिकता तो आप ही में भरी पड़ी है। और अब तो प्रकाश गोविंद जी ने अनुमोदन भी कर दिया है। वैसे एक बात बताईए, उस दो लाइन के भजन में से तो आपने इतने-इतने अर्थ निकाल लिए जो उसके रचयिता ने भी सपने में नहीं सोचे होंगे। मगर प्रकाश गोविंद जी का आप दो लाइन का व्यंग्य नहीं समझ पाए कि देखिए तो, कैसे-कैसे लोग दार्शनिक बने फिर रहे हैं। <br />बातें तो बहुत हैं मन में पर संजय जी ही कहें तो अच्छा है। हां, अगर संजय भाई नंे दो-चार दिन और लगाए तो मैं खुदको रोक नहीं पाऊंगा।Anonymousnoreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-4199775936001289890.post-52135747729621511822009-06-05T17:32:33.757+05:302009-06-05T17:32:33.757+05:30Grover saahab ye to sadiyo se chalaa aarahha hai t...Grover saahab ye to sadiyo se chalaa aarahha hai tab bhi koi nahi sudherta . ek samay tha jab guru ke ashtam me shishya gurusewa me leen ho shiksha prapt karte the aaj,guru swayam vishwa kaa sabse arthik roop se sashakt prani ban arthik roop se hi sashakt praniyo ko hi shiksha de rahaa hai.<br /> sunder lekh ke liye dhanyavadpritiguptahttps://www.blogger.com/profile/12028333881135957079noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-4199775936001289890.post-48607399998667508802009-06-05T14:11:31.016+05:302009-06-05T14:11:31.016+05:30Anon..ji
मुझे कतई आश्चर्य नहीं है आपके इस स्तर पर...Anon..ji<br /><br />मुझे कतई आश्चर्य नहीं है आपके इस स्तर पर उतरने का। दरअसल आप जिस साधन पर सवार हैं वह अपनी सवारी को अंततः इसी स्थान पर ले आता है। यह साधक की नहीं साधन की कमजोरी है। क्या देश भक्ति, समाज सेवा, गरीबों की सेवा, मानवता की सेवा, इसी भाषा में की जानी है? तार्किकता का इतना बड़ा अस्त्र इतना जल्दी भोंथरा हो गया? इतने सारे चश्मे अब कहाँ से प्रगट हो रहे हैं, शायद आँखो पर नहीं लगाकर जेब में रखते होंगे। मुबारक हो...........जो भी बकना हो जम कर बक लीजिये। देख लीजिये निर्णय अन्ततः तर्क से नहीं भावना से ही हो रहा है। अलविदा..... ईश्वर आपके शब्द सलामत रखे।<br /><br />और बकिये जो भी बकना है....Anonymousnoreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-4199775936001289890.post-54523397096393028562009-06-05T13:29:44.439+05:302009-06-05T13:29:44.439+05:30शुक्रिया कीड़ाचार्यजी, अपने असली रुप में आप आशा से ...शुक्रिया कीड़ाचार्यजी, अपने असली रुप में आप आशा से कहीं जल्दी अवतरित हो गए। अंततः आपने माना तो कि चमत्कारों के पीछे किस तरह की निकम्मी, चालू और षड्यंत्रकारी प्रवृतियां काम करती हैं। अब दूध चम्मच से ही पीएंगे या खुद भी कुछ हाथ-पांव हिलाएंगे। या अभी और 1000-1200 साल जन्म-भोज, मरण-भोज और गिद्ध-भोज खाते रहेंगे। अपने नाकारापन को बचकाने रस्मों-रिवाजों में बचकानी गड़म-सड़म, अंत्रम-मंत्रम से कब तक ढकते रहेंगे ? परम्परा, मर्यादा, सभ्यता, संस्कृति की आड़ में कब तक अपने भिखमंगेपन को ग्लोरीफाई करेंगे ? कृपा करके अब अपने स्वार्थों के अनुरुप बनाए काल्पनिक ईश्वर के नाम पर निठल्ली-निठारी खाना बंद कीजिए और कोई वास्तविक काम शुरु करके देश की भूखी, गरीब, अशिक्षित, परेशान जनता की जान बख्श दीजिए।Anonymousnoreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-4199775936001289890.post-41168774001156358832009-06-05T10:30:04.413+05:302009-06-05T10:30:04.413+05:30Anon... ji,
नहीं ब्लाग में एक चमत्कारी कीड़ा घुस ...Anon... ji,<br /><br />नहीं ब्लाग में एक चमत्कारी कीड़ा घुस गया है, एक नया एण्टी वायरस जल्दी ही आने वाला है नाम होगा "लम्पट कार्यवाहियों के लिये औचित्य की तलाश है नास्तिकता" इस से वायरस स्केन किया जाना है।चमत्कारी कीड़ाnoreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-4199775936001289890.post-84323753288923153902009-06-05T08:42:51.599+05:302009-06-05T08:42:51.599+05:30क्या यह तूफान से पहले की खामोशी है ?क्या यह तूफान से पहले की खामोशी है ?Anonymousnoreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-4199775936001289890.post-89506325558945651462009-06-03T16:59:57.056+05:302009-06-03T16:59:57.056+05:30प्रिय श्री प्रकाश गोविन्द जी,
मान्यवर
आपका ...प्रिय श्री प्रकाश गोविन्द जी, <br /> मान्यवर <br /> आपका सुझाव सर-माथे लेकिन आपको तो कई बार पढ़ने के बावजूद मेरी टिप्पणी ही समझ में नहीं आई कि मैं कहना क्या चाहता हूँ , फिर भी आपने मुझे इतना काबिल समझ लिया कि मैं ऐसी किताब लिख सकता हूँ। रहने दीजिये किताब भी शायद समझ में नहीं आयेगी।<br /><br />मुझे भी क्या है कि कई बार आपकी टिप्पणी पढ़ने के बाद भी यह समझ में नहीं आया कि आपको मेरी टिप्पणी में क्या समझ नहीं आया। कौनसा वाक्य, कौनसा संदर्भ, कौनसा शब्द?<br /><br />लगता है मेरी टिप्पणी आपने कई बार पढ़ी लेकिन शायद ध्यान से एकबार भी नहीं पढ़ी इसलिये आपको कुछ भी स्पष्ट नहीं हुआ। श्रीमान् मैंने भी यही कहा है कि लादेन और रजनीश (आपके अनुसार) को एक ही श्रेणी में खड़ा नहीं किया जा सकता, हाँलाकि दोनों ही भीड़ से अलग खड़े हैं । मैं ने रजनीश को विचारधारा के स्तर पर भीड़ से अलग नहीं माना है, मैंने यह कहा है कि भीड़ से अलग खड़े होने के आधार पर ही किसी को बौद्धक-तार्किक नहीं माना जा सकता, बौद्धकता-तार्किकता की कसौटी अलग हैं। आप मेरी टिप्पणी को ब्लागर की टिप्पणी के संदर्भ में पढ़े। नहीं समझ में आना एक बात है और नहीं समझने के लिये नहीं समझना दूसरी बात है।<br /> बहरहाल आप का कोटिशः हार्दिक धन्यवाद कि नहीं समझ में आने के बावजूद, (एक स्थान पर तो गलत समझने के बावजूद) आपने न केवल मेरी टिप्पणी को टिप्पणी करने योग्य समझा बल्की मुझे दर्शन पर पुस्तक लिखने योग्य समझ कर मेरा मान बढ़ाया जोकि मेरे लिये कुछ अधिक ही है। <br />बार-बार धन्यवादप्रीतीश बारहठhttps://www.blogger.com/profile/02962507623195455994noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-4199775936001289890.post-38676548080901491142009-06-03T11:48:47.418+05:302009-06-03T11:48:47.418+05:30भाई शमीम फराज जी, आपकी उक्त टिप्पणी प्रकाशित नहीं ...भाई शमीम फराज जी, आपकी उक्त टिप्पणी प्रकाशित नहीं हो पायी है। लगता है ब्लाग में कोई चमत्कारी कीड़ा (वायरस) घुस गया है। ठीक है, निपटेंगे। ठीक समझे ंतो कृपया टिप्पणी दोबारा भेजें।<br />जासूस जी मैं जल्दी ही जवाबात के साथ हाजिर होऊंगा। रोमांच के साथ धैर्य भी बनाए रखिए।Sanjay Groverhttps://www.blogger.com/profile/14146082223750059136noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-4199775936001289890.post-29217064629892296132009-06-03T11:45:45.628+05:302009-06-03T11:45:45.628+05:30संजय जी,
सबसे पहले तो आपने ही कहा था कि जावेद साहे...संजय जी,<br />सबसे पहले तो आपने ही कहा था कि जावेद साहेब फिल्म वालों पर क्यों नहीं बोलते ? अब आप ही.....!जासूस जोशीnoreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-4199775936001289890.post-68380735963118609002009-06-03T11:19:28.284+05:302009-06-03T11:19:28.284+05:30सबसे पहले तो आपने ही कहा था कि जावेद साहेब फिल्म व...सबसे पहले तो आपने ही कहा था कि जावेद साहेब फिल्म वालों पर क्यों नहीं बोलते ? अब आप ही.....!जासूस जोशीnoreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-4199775936001289890.post-75574608941059323152009-06-02T23:21:26.098+05:302009-06-02T23:21:26.098+05:30प्रिय प्रीतीश बारहठ जी
मान्यवर
अब आप कोई दर्शन...प्रिय प्रीतीश बारहठ जी <br /><br /><br />मान्यवर <br />अब आप कोई दर्शनात्मक पुस्तक लिख ही डालिए ! <br /><br />वो क्या है कि आपकी प्रतिक्रिया कई बार पढने के बावजूद कुछ <br />समझ में नहीं आई ! आप कहना क्या चाहते हैं यही स्पष्ट नहीं हो पा रहा है ! <br /><br />आप भीड़ से अलग होने के प्रसंग को लादेन और रजनीश से मिक्स कर रहे हैं ! क्या आप सर्जन और विनाश के मध्य कोई रेखा नहीं देख रहे ? अपनी बात को रखना और बात है लेकिन तर्क के लिए ही तर्क करना नितांत अलग बात !प्रकाश गोविंदhttps://www.blogger.com/profile/15747919479775057929noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-4199775936001289890.post-61837384907911421192009-06-02T21:21:43.199+05:302009-06-02T21:21:43.199+05:30मित्रों,कुछ कारणों से कुछ दिनों से आपसे दूर था। शी...मित्रों,कुछ कारणों से कुछ दिनों से आपसे दूर था। शीघ्र ही पूर्ववत मुखातिब होऊंगा। तब तक आप सब कृपया जारी रहिए। खासकर प्रीतिशजी। रोमांच बना रहना चाहिए।Sanjay Groverhttps://www.blogger.com/profile/14146082223750059136noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-4199775936001289890.post-34534894294342716462009-06-02T09:23:15.644+05:302009-06-02T09:23:15.644+05:30जावेद साहब ने घुमा-फिराकर क्यूँ कहा? आपने अपनी तरफ...जावेद साहब ने घुमा-फिराकर क्यूँ कहा? आपने अपनी तरफ से कारण का अनुमान भी लगाया है। आप वक्तव्य को फिर से पढिये, उन्होंने घुमा-फिराकर कुछ भी नहीं कहा है। जो कारण आपने बताये हैं, यदि वे कारण होते तो इस व्याख्यान में ऐसा कोई प्रसंग नहीं है जहाँ आध्यात्मिकता के प्रसंगों का उल्लेख आवश्यक था, वे आसानी से उनका जिक्र करने से बच सकते थे। वे केवल जिक्र ही नहीं कर रहे, बल्कि उक्त आध्यात्मिकता पर गर्व करने को अपनी तरफ से उचित भी बता रहे हैं , यहाँ तक कि ताल ठोक रहे हैं। अतः उनके सामने समस्या वह नहीं थी जो आपने अनुमान लगाया है। समस्या सीमित और सतही चिंतन की है। मुझे आस्कर अवार्ड प्रकरण का ज्ञान नहीं है, कृपया अवगत करायें। मैंने जावेद साहब के फिल्मों के प्रति रवैये का प्रश्न इसलिये उठाया था, क्योंकि मैं यह मानता हूँ कि यदि मैं किसी पर कोई आरोप लगाता हूँ, या किसी विचार को खारिज कर दूसरे विचार का समर्थन करता हूँ, तो जो आरोप मैं लगा रहा हूँ वही आरोप मेरे ऊपर या मेरे विचार के ऊपर नहीं लगने चाहिएं। खुद हत्यारा होते हुए मुझे अहिंसा का संदेश देने का कोई नैतिक अधिकार नहीं है। फिर भी यदि निर्लज्जता के साथ मैं यह करता हूँ तो मेरा संदेश प्रभावहीन होगा। आखिर हाथ में खून सना खंजर लेकर तो लोगों को अहिंसा के लिये तैयार नहीं किया जा सकता। मैं आपसे सहमत हूँ कि इससे दूसरों के पाप नहीं धुलते, लेकिन मुझे तो उन पर अंगुली उठाने का नैतिक अधिकार नहीं है। मैं स्पष्ट कर देना चाहता हूँ कि मैं जावेद साहब को, जैसा आपने लिखा है, बड़ा चालू, या समाजविरोधी नहीं मानता हूँ और न ही मैं उनसे ईमानदारी, अच्छाई और उसूल निभाने की उम्मेदें रखता हूँ। लेकिन हाँ जब कोई व्यक्ति प्रश्न उछालता है तो मैं उससे प्रतिप्रश्न करना भी जरूरी समझता हूँ। मैं जावेद साहब की तहर कोई जानी पहचानी हस्ती नहीं हूँ, पता नहीं आपने कैसे निष्कर्ष निकाल लिया कि मैं जो लोग महात्मा बने फिरते हैं मैं उनसे कोई सवाल नहीं करता। आप कहते हैं कि आपकी आँखों पर चश्मा नहीं है, फिर आपने कैसे निष्कर्ष निकाल लिया कि मैं अनुचित तरीकों से पेट भरता हूँ और अपनी आय के विषय में बात करने से कतराता हूँ? हम परिचित भी नहीं हैं फिर आखिर आपने कैसे यह निष्कर्ष निकाला कि मैं अपनी आय के स्रोत को लेकर अपराधबोध से ग्रसित हूँ? आपने किस चश्मे से देखा? इस चश्मे को उतार लीजिये महानुभाव जिससे आपने मेरी आय के स्रोत का दिलचस्प संयोग बाबाओं के पास आने वाले काली कमाईवालों के साथ भी बैठा दिया है। इस दिलचस्प संयोग पर नाचने वाले अपने मन-मयुर से फिलहाल तो केवल इतना पूछिये कि तमाम तरह के सवालों के बाद भी 1 प्रतिशत बाबा और 1 प्रतिशत उनके चेले जो आपके प्रश्नहीन होने तक बचे रहेंगे क्या उनकी आध्यात्मिकता आपको स्वीकार होगी या इस चश्मे की और भी परत हैं। ग्रोवर साहब इस 1 प्रतिशत के विषय में सोचिये जो बाबाऔं से इसलिये दुःखी है कि उन्हौंने उसकी आस्था को धंधे में बदल दिया है और जावेद साहब से इसलिये कि वे उसकी आस्था को गाली देते हैं। फिलहाल यह तो खुला कि आप पाप-पुण्य को मानते हैं। हाँ यदि मेरी आय के स्रोत की शुचिता, और बैलेंसशीट देखने के बाद किसी चश्मे के हटने की संभावना हो तो बन्दा हाजिर है।<br /> <br /><br />और कहिये जो भी कहना है....प्रीतीश बारहठhttps://www.blogger.com/profile/02962507623195455994noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-4199775936001289890.post-13794071744801391122009-06-02T09:21:55.765+05:302009-06-02T09:21:55.765+05:30आप ने जिस भजन का उल्लेख किया है उस पर मैं भी रोमां...आप ने जिस भजन का उल्लेख किया है उस पर मैं भी रोमांचित नहीं होता. मैं सत्यनारायण कथाओं पर रोमांचित होने के लिये किसी से कह भी नहीं सकता। लेकिन उक्त भजन पर रोमांचित न होने के मेर कारण अलग होते। इस भजन की पहली पंक्ति आस्था से संबंधित है तो दूसरी नीति से, आपने रहीम के नीति के दोहे तो पढ़े होंगे। हो सकता है मैं गलत होऊँ लेकिन मुझे लग रहा है कि आपने राम का अर्थ हिन्दु अवतार से लिया हो, और दूसरी पंक्ति को पुरुष प्रधान समाज में नारी की गैर-बराबरी से लिया हो। इस तरह आपका उक्त भजन का अस्वीकार उचित है। लेकिन मेरे आग्रह पर एकबार, एक आस्तिक व्यक्ति की दृष्टि से इस भजन में राम का अर्थ सम्प्रदायातीत ईश्वर से लगाइये, तब इसकी व्याख्या यह होती है कि मनुष्य को केवल एक ईश्वर की पूजा-भक्ति करनी चाहिए और व्यक्ति पूजा से दूर रहना चाहिए, जैसी व्यक्ति पूजा आजकल हम देख रहे हैं। अमिताभ बच्चन के भी मंदिर बन गये हैं और वहाँ शायद धूप-बत्ती के साथ आरती भी गायी जाती हो। अब इस पंक्ति में नास्तिक और आस्तिक दोनों के लिये के लिये संदेश है, नास्तिक इसे व्यक्ति पूजा से दूर रहने के संदेश के रूप में ग्रहण कर सकता है। अब दूसरी पंक्ति पर आते हैं, मैं नहीं कहूँगा कि आप जैव-विज्ञान या मनोविज्ञान की दृष्टि से इस पर विचार करें। आप व्यावहारिक दृष्टि से विचार करें आखिर भेद क्या होता है, उसे गोपनीय रखने की क्या आवश्यकता है, एक पुरुष के निकट उसका सबसे करीबी रिश्ता क्या है जहाँ उसके सबसे कमजोर होने की सबसे ज्यादा संभावना है, इतने पर भी उक्त पंक्ति में एक विशेषण और है, प्यारी अर्थात बचने की कोई संभावना नहीं। जीवन के व्यवहार में हम अनुभव करते हैं कि अत्यधिक भावुकता में उठाये गये कदमों के कारण असहज स्थिति उत्पन्न हो जाती है, सफलता दूर हो जाती है। यदि एक पुरूष उक्त परिस्थिति में भी अपनी भावुकता पर नियन्त्रण प्राप्त कर लेता है, तो अपनी एक कमजोरी को सदा के लिये जीत लेता है। आप पूछ सकते हैं कि मनुष्य के जीवन में कोई भेद होना ही क्यूँ चाहिये। मैं निवेदन करना चाहूँगा कि भेद का जनक केवल पाप ही नहीं है, और संसार में व्यक्ति अकेला ही नहीं है, और उक्त पंक्ति में पत्नी की और से खतरा नहीं पत्नी के कारण खतरे की ओर इशारा मात्र है। (उदाहरण की आवश्कता हो तो आदेश करें) अब मैं आपको हमारी आँखों पर चढ़ रहे उस चश्मे से परिचित कराता हूँ जिसकी हम अवहेलना करते हैं। यदि ऐसा कोई शोध प्रकाशित होता है जो यह निष्कर्ष प्रदान करता हो कि परुषों की तुलना में महिलायें अधिक बातूनी या पर निंदक, भेद की कच्ची होती हैं तो हम उसे नहीं मानते हैं। लेकिन यदि कोई ऐसा शोध प्रकाशित होता है कि महिलाये पुरुषों की तुलना में अधिक संवेदनशील, दयालु, कुशल प्रशासक, तार्किक, तीक्ष्ण बुद्धि होती हैं तो हम उस शोध को अधिक प्रमाणिक ही नहीं मानते अपना सर्टिफिकेट भी साथ जोड़ देते हैं। अब सोचिये शायद लगे कि इस भजन में इतनी निकृष्ट बात नहीं है? मैं नहीं कह सकता कि गाने वाले ने उस भजन को साम्प्रदायिक चश्मे के साथ न गाया हो लेकिन उस साम्प्रदायिक चश्मे से सुने जाने की भी संभावना है। मेरा इस भजन से विरोध इसलिये है कि यह नारी को मुख्य धारा में लाने की आवश्यकता को खारिज करता है। यह भजन जिस ने भी लिखा होगा, जब भी लिखा होगा उस समय और समाज का नारी के व्यवहार का यह आंकलन यदि 100% सही भी हो तो भी मैं मानता हूँ कि शिक्षा, सम्मान और उचित भूमिका मिलने पर औरत व पुरुष की मानसिक दृढ़ता में में कोई अत्यधिक असमानता नहीं होगी। <br /><br />जारी.........प्रीतीश बारहठhttps://www.blogger.com/profile/02962507623195455994noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-4199775936001289890.post-36041506613616946912009-06-02T09:20:27.737+05:302009-06-02T09:20:27.737+05:30यह तो हुई एक बात, दूसरे भीड़ से पृथक खड़े होना अपन...यह तो हुई एक बात, दूसरे भीड़ से पृथक खड़े होना अपने आपमें तार्किक होने की कसौटी नहीं है, न ही भीड़ में खड़ा रहना अतार्किता का सबूत है। क्योंकि भीड़ से अलग तो ओसामाबिनलादेन, सद्दाम हूसैन, वीरप्पन और जगन गूजर भी खडे थे, एक पागल भी भीड़ से अलग खड़ा होता है, और फैशन में भी अलग खड़ा हुआ जाता है। लेकिन उन्हें हम तार्किक नहीं मानते, आप भी उनके साथ रोमांच अनुभव नहीं करते होंगे। न तो पागल व्यक्ति तार्किक होता है न ही उसके हाथ के पत्थर विचार माने जा सकते हैं। भीड़ से अलग खडे होना आत्मविश्वास की निशानी है यदि यह विवेकपूर्ण है तभी अपील करता है। लेकिन भीड़ से अलग घमण्ड और अज्ञानता में भी खड़ा हुआ जा सकता है। अपने आपको चश्माहीन और तार्किक होने का सर्टिफिकेट तो तालीबानी, बजरंगी और शिवसैनिक भी देते हैं लेकिन हमारे यहाँ वे सर्टिफिकेट मान्य नहीं होते हैं। जो दिल-दिमाग किसी प्रतिफल के स्वरूप गिरवी रखे होते हैं, उनके गिरवी होने की पहचान तो हो जाती है, उन्हें मुक्त कराने का खयाल तो बार-बार उठता रहता है लेकिन जो दिल-दिमाग बिना किसी प्रतिफल के ही किसी की तिजौरी में बंद है उनकी पहचान भी नहीं हो पाती। ऐसे दिल-दिमाग को बंद तिजौरी से बाहर निकलवाने का खयाल भी नहीं आता अतः उनकी नियति बंद तिजौरी में ही सड़ जाने की होती है। <br /><br />जारी...........प्रीतीश बारहठhttps://www.blogger.com/profile/02962507623195455994noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-4199775936001289890.post-8478529336060708752009-06-02T09:18:54.625+05:302009-06-02T09:18:54.625+05:30प्रथम तो यह कि जिसे आप भीड़ से अलग बता रहे हैं वह ...प्रथम तो यह कि जिसे आप भीड़ से अलग बता रहे हैं वह भीड़ से अलग नहीं है वस्तुतः एक पूरी की पूरी भीड़ है। नास्तिकता के विचार के प्रणेता भी जावेद अख्तर नहीं हैं वे केवल उसके प्रवक्ता हैं, उनके व्याख्यान में एक भी ऐसा वाक्य नहीं है जो पहले से ही कहा-सुना हुआ नहीं हो। गूढ़तम व्याख्या के साथ नास्तिकता के विचार का प्रतिपादन उन्हीं ग्रन्थों में किया हुआ है जहाँ से आस्तिकता का विचार प्राप्त हुआ है, जावेद साहब की नास्तिकता की व्याख्या उसके समकक्ष बहुत छिछली ठहरती है। नास्तिकता का एक पूरा दर्शन भी मिलता है, लेकिन वह भी अनाध्यात्मिक नहीं है। किसी भी धर्म के ग्रंथों को पढ़ लीजियेगा वहाँ एकाधिक नास्तिक चरित्रों का गठन किया हुआ मिल जायेगा। इस सबके बावजूद आध्यात्मवादियों ने नास्तिकता को सर्वथा त्याज्य नहीं बताया है, उनका ऐसा आग्रह ऐसी हठधर्मिता नहीं है। जिन नास्तिक चरित्रों का पतन और संहार धार्मिक ग्रंथों में गढ़ा गया है उसका कारण उनकी नास्तिकता को नहीं उनके अहंकार और चारित्रिक पतन को बताया गया है। आशय यह है कि नास्तिकता को होल्ड करने के लिये और भी विराट, और भी उन्नत व्यक्तित्व की आवश्यकता है। यह भी निरन्तर याद रखने की आवश्यकता है कि आध्यात्मिकता के लिए संस्थागत धर्म की अनिवार्यता नहीं है, और न ही यह कोई अनिवार्य शिक्षा या साक्षरता की भाँति प्रत्येक व्यक्ति के लिये जरूरी है।( यदि व्याख्यान होता तो मैं उदाहरण भी देता चलता।) मुझे जावेद साहब की नास्तिकता पर आपत्ति नहीं है, श्रीमान् मुझे उनके अंधविश्वास, झाड़-फूंक और आडम्बर विरोध या आध्यात्मिकता की आड़ में किये जा रहे कुकर्मों के विरोध पर गर्व भी है। मुझे आपत्ति उनके आध्यात्म के विषय प्रगट किये गये चालू विचारों से है, मैं स्वयं को आध्यात्म की आलोचना ( समीक्षा) के लिये तैयार पाता हूँ लेकिन उचित भाषा में गंभीर चितंन के साथ, ऐसा नहीं कि हम जब तर्क नहीं कर पायें तो गाली-गलौच की भाषा पर उतर आयें।<br /><br />जारी......प्रीतीश बारहठhttps://www.blogger.com/profile/02962507623195455994noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-4199775936001289890.post-24668574434513215422009-06-02T09:17:13.397+05:302009-06-02T09:17:13.397+05:30सर्वप्रथम तो मैं यह स्पष्ट कर देना चाहता हूँ कि जा...सर्वप्रथम तो मैं यह स्पष्ट कर देना चाहता हूँ कि जावेद साहब के प्रति मेरा पूरा सम्मान है, जैसा मैंने पहले भी लिखा। जितना थोडा जावेद साहब के बारे में जानता हूँ उसके मुताबिक वे सज्जन व्यक्ति हैं, अगर उनके विचार मुझे उचित नहीं भी लगें तब भी उनकी सज्जनता मेरे लिये पर्याप्त महत्व रखती है। उनके विषय में मेरी जानकारी की एक सीमा है। उनके आलेख ने मुझे रोमांचित तो नहीं किया लेकिन हाँ अपील जरूर किया था, वैसे मैं भी रोमांचित हुआ हूँ जब मैंने पहली बार जादू देखा, सिनेमा देखा, तालाब में नहाया अर्थात रोमांच कारण बौद्धिकता से इतर भी होता है, जहां कुछ चमत्कार जैसा अनुभव होता हो। टिप्पणी मैंने आपकी भूमिका के कारण की थी, जिससे लग रहा था कि आप उक्त व्याख्यान से अक्षरशः सहमत हैं, टिप्पणी की, क्यूँकि मुझे लगा था कि इतने सतही विचारों को भी कोई, जोकि बौद्धिक होने का दम भरता हो, कैसे मानवता, सामाजिकता और व्यावहारिकता के लिये दुर्लभ उपहार की तरह ग्रहण कर सकता है, आखिर अपने आपको प्रगतिशील मानने वाले बौद्धिक भी क्यूँ अपनी तराजू नहीं रखते हैं या उसका उपयोग नहीं करते हैं। मुझे बार-बार यह भी सोचने को विवश होना पड़ता है कि विचारधारा से जुडे, दर्शन से जुडे लोग भी कितने सीमित अनुभव वाले और चिंतनहीन हैं। हो सकता है मेरी भाषा की व्यजंना अतिरेक पूर्ण हो लेकिन उसे टिप्पणी के रूप में ही लिया जाना चाहिये। मैं यहाँ अपना नजरिया न केवल आपकी टिप्पणी के संदर्भ में स्पष्ट कर रहा हूँ वरन संभव हुआ तो अपने ब्लॉग पर उक्त व्याख्यान को अपनी समीक्षा के साथ पोस्ट भी कर रहा हूँ।<br />मैं आपके रोमांच के लिये आपको पुनः बधाई देता हूँ। आप उन विचारकों के साथ रोमांचित अनुभव करते हैं जो भीड़ से अलग खड़े हैं। जैसा आपने लिखा, रजनीश, अंबेड़कर, गाँधी, मार्क्स, खुशवंत सिंह, राजेन्द्र यादव, उदय प्रकाश, ऐसे नाम और भी होंगे। खुशवंत सिंह और उदयप्रकाश के बारे में मैं इतना नहीं जानता हूँ कि कोई टिप्पणी कर सकूँ। मार्क्स और राजेन्द्र यादव पर यदि आपने अवसर दिया तो अवश्य मैं चर्चा में शामिल हो सकता हूँ। राजेन्द्र यादव और रजनीश के लिये मैं यह नहीं मानता कि विचारधारा के स्तर पर भीड़ से अलग खडे हैं। अंबेडकर, गाँधी और मार्क्स मेरे लिये भी आदरणीय है, अपनी बौद्धिकता से कहीं अधिक अपने चरित्र के कारण। मैं जावेद साहब के व्याख्यान के संदर्भ में यह जनना चाहूँगा कि गाँधी और रजनीश की आध्यात्मिकता के विषय में अब आपके क्या विचार हैं।(बताना आवश्यक नहीं है।) <br /> प्रथम तो यह कि जिसे आप भीड़ से अलग बता रहे हैं वह भीड़ से अलग नहीं है वस्तुतः एक पूरी की पूरी भीड़ है। नास्तिकता के विचार के प्रणेता भी जावेद अख्तर नहीं हैं वे केवल उसके प्रवक्ता हैं, उनके व्याख्यान में एक भी ऐसा वाक्य नहीं है जो पहले से ही कहा-सुना हुआ नहीं हो। गूढ़तम व्याख्या के साथ नास्तिकता के विचार का प्रतिपादन उन्हीं ग्रन्थों में किया हुआ है जहाँ से आस्तिकता का विचार प्राप्त हुआ है, जावेद साहब की नास्तिकता की व्याख्या उसके समकक्ष बहुत छिछली ठहरती है। नास्तिकता का एक पूरा दर्शन भी मिलता है, लेकिन वह भी अनाध्यात्मिक नहीं है। किसी भी धर्म के ग्रंथों को पढ़ लीजियेगा वहाँ एकाधिक नास्तिक चरित्रों का गठन किया हुआ मिल जायेगा। इस सबके बावजूद आध्यात्मवादियों ने नास्तिकता को सर्वथा त्याज्य नहीं बताया है, उनका ऐसा आग्रह ऐसी हठधर्मिता नहीं है। जिन नास्तिक चरित्रों का पतन और संहार धार्मिक ग्रंथों में गढ़ा गया है उसका कारण उनकी नास्तिकता को नहीं उनके अहंकार और चारित्रिक पतन को बताया गया है। आशय यह है कि नास्तिकता को होल्ड करने के लिये और भी विराट, और भी उन्नत व्यक्तित्व की आवश्यकता है। यह भी निरन्तर याद रखने की आवश्यकता है कि आध्यात्मिकता के लिए संस्थागत धर्म की अनिवार्यता नहीं है, और न ही यह कोई अनिवार्य शिक्षा या साक्षरता की भाँति प्रत्येक व्यक्ति के लिये जरूरी है।( यदि व्याख्यान होता तो मैं उदाहरण भी देता चलता।) मुझे जावेद साहब की नास्तिकता पर आपत्ति नहीं है, श्रीमान् मुझे उनके अंधविश्वास, झाड़-फूंक और आडम्बर विरोध या आध्यात्मिकता की आड़ में किये जा रहे कुकर्मों के विरोध पर गर्व भी है। मुझे आपत्ति उनके आध्यात्म के विषय प्रगट किये गये चालू विचारों से है, मैं स्वयं को आध्यात्म की आलोचना ( समीक्षा) के लिये तैयार पाता हूँ लेकिन उचित भाषा में गंभीर चितंन के साथ, ऐसा नहीं कि हम जब तर्क नहीं कर पायें तो गाली-गलौच की भाषा पर उतर आयें।<br /><br />जारी......प्रीतीश बारहठhttps://www.blogger.com/profile/02962507623195455994noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-4199775936001289890.post-21657072139624543802009-06-01T12:41:26.016+05:302009-06-01T12:41:26.016+05:30मैंने अभी-अभी आपकी टिप्पणी देखी है। आपने “जारी” लि...मैंने अभी-अभी आपकी टिप्पणी देखी है। आपने “जारी” लिखा है। कुछ और लिखना चाहेंगे या मैं अपना नजरिया स्पष्ट करूं। आज सुबह से ही आपके ब्लॉग पर टिप्पणी करने में बहुत परेशानी आ रही है।प्रीतीशnoreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-4199775936001289890.post-43013632620934088462009-06-01T11:26:29.064+05:302009-06-01T11:26:29.064+05:30संजय ग्रोवर साहब इतना सारगर्भित वैचारिक चिंतन लिए ...संजय ग्रोवर साहब इतना सारगर्भित वैचारिक चिंतन लिए हुए इस लेख को प्रस्तुत करने के लिए आपका हार्दिक आभार ! <br /><br />मैं स्वयं को सौभाग्यशाली मानता हूँ कि मुझे दो-तीन बार जावेद अख्तर से बातचीत करने का अवसर प्राप्त हो चुका है ! मैं हमेशा उनकी सोच और लेखन का कायल रहा हूँ, वक्ता के तौर पर भी वो जादू सा करते हैं ! <br /><br />यह एक ऐसा संग्रहणीय आलेख है जिसे हर एक को पढना चाहिए !प्रकाश गोविंदhttps://www.blogger.com/profile/15747919479775057929noreply@blogger.com