ग़ज़ल
मिले हमको ख़ुशी तो हम बड़े नाशाद होते हैं
कि शायर अपनी बरबादी से ही आबाद होते हैं
ये सच्चाई का पारस इस तरह चीज़ें बदलता है
तुम्हारे संग मेरी ज़द में आकर दाद होते हैं
दिखे जो मस्लहत तो पल में सब कुछ भूल जाते हैं
वो जिनको ज़िंदगी के सब पहाड़े याद होते हैं
किसी दिन तुम ख़ुदी को, ख़ुदसे पीछे छोड़ जाते हो
वो सब जो तुमसे आगे थे, तुम्हारे बाद होते हैं
वो गिन-गिनकर मेरी नाक़ामियों को याद करते हैं
मुझे उनके तरक्क़ी के तरीक़े याद होते हैं
-संजय ग्रोवर
नाशाद= दुखी, संग=पत्थर, ज़द=दायरा, पहुंच, रेंज, मस्लहत=फ़ायदा,
(हांलांकि अलग़-अलग़ डिक्शनरियों में ज़द शब्द के अलग़-अलग़ अर्थ जैसे चुगना, चोट, प्रहार-सीमा, लक्ष्य आदि दिए गए हैं मगर जब आप वाक्य-प्रयोग देखेंगे तो वही अर्थ ज़्यादा नज़दीक पाएंगे जो ऊपर दिए गए हैं।)