बुधवार, 8 सितंबर 2010

अफ़वाहें अमर हैं

स्थान: फ़ेसबुक


समय: कुछ घण्टे पहले

स्टेटस:
Uday Prakash :

'जो यथार्थ को व्यक्त करता है,
वह मार दिया जाता है अफ़वाहों से !'

Sanjay Grover :


अफ़वाहें अमर हैं


गुट-विरोधी गुंडों का गुट
उनकी लटें सुलझाकर
चोटी गूंथ रहा है


साहित्यिक सरगनाओं की
गणित-निपुण आवारगी
उनकी रक्षा में तैनात है

उन्हें किसका डर है

वे कलात्मक हैं,अमूर्त्त हैं,
हुनर हैं

अफवाहें अमर हैं

धक्के खाती
घर को लुटाती
सच्चाई तस्लीम न होने दी गई
अफ़वाहों के भारी विरोध के चलते

अब
मौज-मजे की बारी आयी है
अफ़वाहों का पहला नंबर है

अफवाहें अमर हैं

(अभी-अभी लिखा गया....बाक़ी पूरा होने पर....)


-संजय ग्रोवर

23 टिप्‍पणियां:

  1. गुट-विरोधी गुंडों का गुट
    उनकी लटें सुलझाकर
    चोटी गूंथ रहा है
    वाह!
    अद्भुत! इतना सुंदर बिम्बों का प्रयोग .. झट से आकर्षित करता है। ज़ल्द से पूरा कर पूरा सुनाएं।
    देसिल बयना-खाने को लाई नहीं, मुँह पोछने को मिठाई!, “मनोज” पर, ... रोचक, मज़ेदार,...!

    जवाब देंहटाएं
  2. 'जो यथार्थ को व्यक्त करता है,
    वह मार दिया जाता है अफ़वाहों से !'
    उन्हें किसका डर है

    क्या बात है और आपने भी क्या खूब लिखा है
    गुट-विरोधी गुंडों का गुट
    उनकी लटें सुलझाकर
    चोटी गूंथ रहा है
    वे कलात्मक हैं,अमूर्त्त हैं,
    हुनर हैं

    अफवाहें अमर हैं
    बाकि तो साब पूरी लिखंगे तो हमें भी पूरा मज़ा आयेगा

    जवाब देंहटाएं
  3. विम्बो में कही गयी बात अच्छी लगी... शीर्षक स्वयं विम्ब में है...

    जवाब देंहटाएं
  4. बढ़िया..पूरा होने का इन्तजार करें कि वो भी अफवाह? :)

    जवाब देंहटाएं
  5. अफवाहें अमर हैं, अमर हैं, अमर हैं!!!!!!!

    जवाब देंहटाएं
  6. संजय भाई कटु सत्य है अफवाहें अजर अमर हैं और अमुल्य भी लेकिन लगता है मुझे अखबार में विज्ञापन दे कर अपना नाम बदलना होगा...

    जवाब देंहटाएं
  7. आप जो भी कहते हें सच कहतें हें

    जवाब देंहटाएं

  8. इस पोस्ट की ई-मेल सदस्यता ले रखी है,
    किन्तु वहाँ पोस्ट की बजाय केवल शीर्षक आता है,
    ऍप्रूवल आभिजात्य से मुझे हमेशा से अरुचि रही है ।
    अतएव यहाँ आकर पोस्ट पढ़ना कम ही हो पाता है,
    ईश्वर आपका रुतबा बरकरार रखे । आता रहूँगा, बस इतना ही !

    जवाब देंहटाएं
  9. आप की रचना 10 सितम्बर, शुक्रवार के चर्चा मंच के लिए ली जा रही है, कृप्या नीचे दिए लिंक पर आ कर अपनी टिप्पणियाँ और सुझाव देकर हमें अनुगृहीत करें.
    http://charchamanch.blogspot.com


    आभार

    अनामिका

    जवाब देंहटाएं
  10. मित्रों, कविता पूर्णता की ओर अग्रसर है। मगर पोस्ट की ऐडीटिंग में एक समस्या आ रही है। ज़रा-सा छेड़ते ही सारे शब्द इकट्ठा होकर एक ही पैराग्राफ़ में तब्दील हो जाते हैं। क्या कोई इसका इलाज बता सकता है ! वरना पूरी कविता एक नयी पोस्ट में डालनी पड़ेगी।

    जवाब देंहटाएं
  11. बहुत ही उत्तम रचना संजय जी बधाई स्वीकार करें साथ ही आपको गणेश चतुर्थी की शुभकामनाएं.......

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  12. sahi kaha... afwaahen amar hai. aur is amratwa ko hum hin pradan kar sach ka gala ghont dete, aankh mund uski raksha mein khade ho jaate, chaahe baat kitni bhi ataarkik kyon na ho. bahut achhi rachna, shubhkaamnaayen.

    जवाब देंहटाएं
  13. Mehengai ka dour hai
    charon taraf shor hai
    saptahik ankade kahate hein
    mehengai per control hai
    janta janti hai kahan kasar hai
    afwahen amar hai

    जवाब देंहटाएं
  14. गुट-विरोधी गुंडों का गुट
    उनकी लटें सुलझाकर
    चोटी गूंथ रहा है
    वाह!

    dhanya hai wo soch.......jo kavita ko dil ke karib lata hai.....:)

    जवाब देंहटाएं

कहने को बहुत कुछ था अगर कहने पे आते....

देयर वॉज़ अ स्टोर रुम या कि दरवाज़ा-ए-स्टोर रुम....

ख़ुद फंसोगे हमें भी फंसाओगे!

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ढूंढो-ढूंढो रे साजना अपने काम का मलबा.........

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